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बावजूद एक विशेष वर्ग की, एक विशेष आचार्य की इस परम्परा सेरागात्मकता जुड़ी रहेगी। युग-द्रष्टा इस आचार्य नेसामाजिक विकृति कोसमझा और स्पष्ट रूप सेनिर्देश दिया- श्रावक का कोई अपना और पराया गुरु नहीं होता है, जिनाज्ञा के पालन में निरत सभी उसके गुरु हैं।" काश, हरिभद्र के द्वारा कथित इस सत्य कोहम आज भी समझ सकें तोसमाज की टूटी हुई कड़ियों कोपुनः जोड़ा जा सकता है। कान्तदर्शी समालोचक : अन्य परम्पराओं के संदर्भ में
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पूर्व में हमने जैन परम्परा में व्याप्त अंधविश्वासों एवं धर्म के नाम पर होनेवाली आत्म-प्रवंचनाओं के प्रति हरिभद्र के क्रांतिकारी अवदान की चर्चा सम्बोधप्रकरण के आधार पर की है। अब मैं अन्य परम्पराओं में प्रचलित अंधविश्वासों की हरिभद्र द्वारा की गई शिष्ट समीक्षा को प्रस्तुत करूंगा।
हरिभद्रकी कान्तदर्शी दृष्टि जहां एक ओर अन्य धर्म एवं दर्शनों में निहित सत्य कोस्वीकार करती है, वहीं दूसरी ओर उनकी अयुक्तिसंगत कपोलकल्पनाओं की व्यंग्यात्मक शैली में समीक्षा भी करती है। इस सम्बंध में उनका धूर्ताख्यान नामक ग्रंथ विशेष महत्त्वपूर्ण है। इस ग्रंथ की रचना का मुख्य उद्देश्य भारत (महाभारत), रामायण और पुराणों की काल्पनिक और अयुक्तिसंगत अवधारणाओं की समीक्षा करना है। यह समीक्षा व्यंग्यात्मक शैली में है। धर्म के सम्बंध में कुछ मिथ्या विश्वास युगों सेरहे हैं, फिर भी पुराण-युग में जिस प्रकार मिथ्या कल्पनाएं प्रस्तुत की गईं- वेभारतीय मनीषा में दिवालियेपन की सूचक सी लगती हैं। इस पौराणिक प्रभाव सेही जैन - परम्परा में भी महावीर के गर्भ-परिवर्तन, उनके अंगूठे कोदबानेमात्र सेमेरु - कम्पन जैसी कुछ चामत्कारिक घटनाएं प्रचलित हुईं। यद्यपि जैन - परम्परा में भी चक्रवर्ती, वासुदेव आदि की रानियों की संख्या एवं उनकी सेना की संख्या, तीर्थंकरों के शरीर प्रमाण एवं आयु आदि के विवरण सहज विश्वसनीय तोनहीं लगते हैं, किंतु तार्किक असंगति सेयुक्त नहीं हैं। सम्भवतः यह सब भी पौराणिक परम्परा का प्रभाव था जिसेजैन परम्परा को अपने महापुरुषों की अलौकिकता को बतानेहेतु स्वीकार करना पड़ा था, फिर भी यह मानना होगा कि जैन - परम्परा में ऐसी कपोल-कल्पनाएं अपेक्षाकृत बहुत ही कम हैं। साथ ही महावीर के गर्भ-परिवर्तन की घटना, जोमुख्यतः ब्राह्मण की अपेक्षा क्षत्रिय की श्रेष्ठता स्थापित करने हेतु गढ़ी गई थी, के अतिरिक्त, सभी पर्याप्त परवर्ती काल की हैं और पौराणिक युग की ही देन हैं और इनमें कपोल-काल्पनिकता का पुट भी अधिक
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