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आग्रही व्यक्ति अपनी युक्ति (तर्क) का भी प्रयोग वहीं करता है, जिसेवह सिद्ध, अथवा खण्डित करना चाहता है, जबकि अनाग्रही या निष्पक्ष व्यक्ति जोउसेयुक्तिसंगत लगता है, उसेस्वीकार करता है। इस प्रकार हरिभद्र न केवल युक्ति या तर्क के समर्थक हैं, किंतु वेयह भी स्पष्ट करतेहैं कि तर्क या युक्ति का प्रयोग अपनी मान्यताओं की पुष्टि या अपनेविरोधी मान्यताओं के खण्डन के लिए न करके सत्य की गवेषणा के लिए करना चाहिए और जहां भी सत्य परिलक्षित होउसेस्वीकार करना चाहिए। इसी प्रकार वेशुष्क तार्किक नहोकर सत्यनिष्ठ तार्किक हैं। कर्मकाण्ड के स्थान पर सदाचार पर बल
हरिभद्र की एक विशेषता यह है कि उन्होंनेधर्म साधना कोकर्मकाण्ड के स्थान पर आध्यात्मिक पवित्रता और चारित्रिक निर्मलता के साथ जोड़नेका प्रयास किया है। यद्यपि जैन परम्परा में साधना के अंगों के रूप में दर्शन (श्रद्धा), ज्ञान और चारित्र (शील) कोस्वीकार किया गया है। हरिभद्र भी धर्म-साधना के क्षेत्र में इन तीनों का स्थान स्वीकार करतेहैं, किंतु वेयह मानतेहैं कि न तोश्रद्धा कोअंधश्रद्धा बनना चाहिए, न ज्ञान कोकुतर्क आश्रित होना चाहिए और न आचार कोकेवल बाह्यकर्मकाण्डों तक सीमित रखना चाहिए। वेकहतेहैं कि 'जिन' पर मेरी श्रद्धा का कारण राग-भाव नहीं है, अपितु उनके उपदेश की युक्तिसंगतता है। इस प्रकार वेश्रद्धा के साथ बुद्धि कोजोड़तेहैं, किंतु निरा तर्क भी उन्हें इष्ट नहीं है। वेकहतेहैं कि तर्क का वाग्जाल वस्तुतः एक विकृति है जोहमारी श्रद्धा एवं मानसिक शांति कोभंग करनेवाला है। वह ज्ञान का अभिमान उत्पन्न करनेके कारणभाव-शत्रु है। इसलिए मुक्ति के इच्छुक कोतर्क के वाग्जाल सेअपनेकोमुक्त रखना चाहिए।21 वस्तुतः वेसम्यग्ज्ञान और तर्क में एक अंतर स्थापित करतेहैं। तर्क केवल विकल्पों का सृजन करता है, अतः उनकी दृष्टि में निरी तार्किकताआध्यात्मिक विकास में बाधक ही है। शास्त्र-वार्तासमुच्चय' में उन्होंनेधर्म के दोविभाग किए हैं- एक संज्ञान-योग और दूसरा पुण्य-लक्षणा22 ज्ञानयोग वस्तुतः शाश्वत सत्यों की अपरोक्षानुभूति है और इस प्रकार वह तार्किक ज्ञान सेभिन्न है। हरिभद्र के अनुसार अंधश्रद्धा सेमुक्त होनेके लिए तर्क एवं युक्ति कोसत्य का गवेषक होना चाहिए, न कि खण्डन-मण्डनात्मका खण्डन-मण्डनात्मक तर्क या युक्ति साधना के क्षेत्र में उपयोगी नहीं है, इस तथ्य की विस्तृत चर्चा उन्होंनेअपनेग्रंथ योगदृष्टिसमुच्चय में की है।23 इसी प्रकार धार्मिक आचार कोभी वेशुष्क कर्मकाण्ड