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________________ 132 ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, बाहु सेक्षत्रिय, पेट सेवैश्य तथा पैर सेशूद्र उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार कुछ पौराणिक मान्यताओं यथा - शंकर के द्वारा अपनी जटाओं में गंगा कोसमा लेना, वायु के द्वारा हनुमान का जन्म, सूर्य के द्वारा कुन्ती सेकर्ण का जन्म, हनुमान के द्वारा पूरेपर्वत कोउठा लाना, वानरों के द्वारा सेतु बांधना, श्रीकृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत धारण करना, गणेश का पार्वती के शरीर के मैल सेउत्पन्न होना, पार्वती का हिमालय की पुत्री होना आदि अनेक पौराणिक मान्यताओं का व्यंग्यात्मक शैली में निरसन किया है। हरिभद्र धूर्ताख्यान की कथा के माध्यम सेकुछ काल्पनिक बातें प्रस्तुत करते हैं और फिर कहते हैं कि यदि पुराणों में कही गई उपर्युक्त बातें सत्य हैं तोयेसत्य क्यों नहीं होसकतीं। इस प्रकार धूर्ताख्यान में वेव्यंग्यात्मक किंतु शिष्ट शैली में पौराणिक मिथ्या-विश्वासों की समीक्षा करते हैं। इसी प्रकार द्विजवदनचपेटिका में भी उन्होंने ब्राह्मण परम्परा में पल रही मिथ्या धारणाओं एवं वर्ण-व्यवस्था का सचोट खण्डन किया है। हरिभद्र सत्य के समर्थक हैं, किंतु अंधविश्वासों एवं मिथ्या मान्यताओं के वे कठोर समीक्षक भी। - तर्क या बुद्धिवाद का समर्थन हरिभद्र में यद्यपि एक धार्मिक की श्रद्धा है किंतु वे श्रद्धा कोतर्क - विरोधी नहीं मानते हैं। उनके लिए तर्करहित श्रद्धा उपादेय नहीं है। वेस्पष्ट रूप सेकहते हैं कि न तोमहावीर के प्रति मेरा कोई राग है और न कपिल आदि के प्रति कोई द्वेष ही है - पक्षपातोन मेवीरेन द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ॥ - लोकतत्त्वनिर्णय, 38 उनके कहने का तात्पर्य यही है कि सत्य के गवेषक और साधना के पथिक कोपूर्वाग्रहों से युक्त होकर विभिन्न मान्यताओं की समीक्षा करनी चाहिए और उनमें जोभी युक्ति संगत लगेउसेस्वीकार करना चाहिए। यद्यपि इसके साथ ही वेबुद्धिवाद सेपनपनेवालेदोषों के प्रति भी सचेष्ट हैं। वेस्पष्ट रूप सेयह कहते हैं कि युक्ति और तर्क का उपयोग केवल अपनी मान्यताओं की पुष्टि के लिए ही नहीं किया जाना चाहिए, अपितु सत्य की खोज के लिए किया जाना चाहिए आग्रही वत निनीषति युक्तिं तत्र यत्र तस्य मतिर्निविष्टा । निष्पक्षपातस्य तु युक्तिर्यत्र तत्र तस्य मतिरेति निवेशम् ॥
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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