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106 करती है कि वह यापनीय परंपरा का ग्रंथ है। यह बात तोअनेक दिगम्बर विद्वान् भीमान रहे हैं कि मूलाचार और आराधना में अनेकों गाथाएँ समान हैं और मूलाचार में गाथाएँ
आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्खाण, नियुक्ति आदि श्वेताम्बर परंपरा में मान्य ग्रंथों से हीउद्धृत हैं। संदर्भः 1. अज्जजिणणंदिगणि-सव्वगुत्त गणि-अज्जमित्तणंदीणं।
अवगमिय पादमूले सम्मंसुत्तंचअत्थंच॥ पुव्वायरियणिबद्धा उवजीवित्ता इमाससत्तीए।
आराधणा सिवज्जेणपाणिदलभोइणारइदा॥ छदुमत्थदाए एत्थ दुजंबद्धं होज्ज पवयणविरुद्धं। सोधेतु सुगीदत्थापवयण वच्छलदाएदु॥ आराधणाभगवती एवं भत्तीए वण्णिदासंती। संघस्स सिवज्जस्सयसमाधिवरमुत्तमं देउ॥ - भगवतीआराधना-2159, 2160, 2161, 2162. देखें - जैनशिलालेख संग्रह भाग 2, माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रंथमाला समिति, लेख क्रमांक- 16, 22,24,26,29,30,31,33,36, 41, 45, 51,54,55,56,59.
देखें - वही, लेख क्रमांक 91. 4. जर्नल ऑफओरियन्टल इस्टिट्यूट बड़ौदा, जिल्द 18, सन् 1969,
पृ. 247-51, थ्री इन्स्क्रिप्शन्स ऑफरामगुप्त - जी.एस. घइ, 5. आदिपुराण (जिनसेन) - 1/49. 6. देखें - जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 76. 7. जैन साहित्य और इतिहास, पृ. 76-77. 8. वही, पृ. 30.
अज्जजिणणंदिगणिअज्जमित्तणंदीणं। अवगमियपायमूले सम्मंसुत्तं च अत्थं च॥ 2161।। पुव्वायरियणिवद्धा उपजीवित्ता इमाससत्तीए। आराहणा सिवजेणपाणिदलभोइणारइदा।। 2162।।