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________________ 101 बातें ऐसी मिली हैं, जिनसे उसके कर्ता शिवार्य भी यापनीय संघ के मालूम होते हैं। देखिए 1. इस ग्रंथ की प्रशस्ति में लिखा है कि आर्य जिननन्दि गणि, आर्य सर्वगुप्त गणिऔर आर्य मित्रनन्दिगणिके चरणों में अच्छी तरह सूत्र और उनकाअर्थसमझकर और पूर्वाचार्यों की रचना को उपजीव्य बनाकर 'पाणितलभोजी' शिवार्य ने यह आराधना रची। हम लोगों के लिए प्रायः ये सभी नाम अपरिचित हैं। अपराजित की परंपरा के समान यह परंपरा भी दिगम्बर सम्प्रदाय की किसी पट्टावली या गुर्वावली में नहीं मिलती। इस धारणा के सही होने का भी कोई पुष्ट और निर्धान्त प्रमाण अभी तक नहीं मिला कि वे शिवकोटि और शिवार्य एक ही हैं, जो समन्तभद्र के शिष्य थे। जो कुछ प्रमाण इस संबंध में दिये जाते हैं, वे बहुत पीछे के गढ़े हुएमालूम होते हैं।"औरतो और, स्वयं शिवार्य ही यह स्वीकार नहीं करते कि मैं समन्तभद्र का शिष्यहूँ। ____ 2. अपराजितसूरि यदि यापनीयसंघ के थे, तो अधिक संभव यही है कि उन्होंने अपने ही सम्प्रदाय के ग्रंथ की टीका की है। 3. आराधना की गाथाएँ काफी तादाद में श्वेताम्बर सूत्रों में मिलती हैं, इससे शिवार्य के इस कथन की पुष्टि होती है कि पूर्वाचार्यों के रचे ग्रन्थों के आधार पर ही यह ग्रंथरचित है। ____ 4. जिन तीन गुरुओं के चरणों में बैठकर उन्होंने आराधना नामक इस ग्रंथ को रचा है, उनमें से ‘सर्वगुप्त गणि' शायद वही हैं, जिनके विषय में शाकटायन की अमोधवृत्ति में लिखा है कि “उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः।”- 1-3-104, अर्थात् सारे व्याख्याता या टीकाकार सर्वगुप्त के पीछे हैं। चूँकि शाकटायन यापनीय संघ के थे, इसलिये संभवयही है किसर्वगुप्त यापनीयसंघकेहीसूत्रों याआगमों केव्याख्याताहों। . 5. शिवार्य ने अपने को पाणितलभोजी' अर्थात् हथेलियों पर भोजन करने वाला कहा। यह विशेषण उन्होंने अपने को श्वेताम्बर सम्प्रदायसे अलग प्रकट करने के लिए दिया है। यापनीय मुनि हाथपरभीभोजन करते थे। वे करतलयोजी कहे जाते थे। 6. आराधना की 1132वीं गाथा में ‘मेदस्स मुण्णिस्स अक्खाणं' (मेतार्यमुनेराख्यानम्) अर्थात् मेतार्य मुनि की कथा का उल्लेख किया गया है। पं. सदासुखजी ने अपनी वचनिका में इस पद का अर्थ ही नहीं किया है। यही हाल नई
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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