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मुक्ति या स्त्री मुक्ति के समर्थक अर्थात् यापनीय होने में संदेह प्रकट करते हैं । वे लिखते हैं कि हमें वे (अपराजितसूरि) सवस्त्र मुक्ति या स्त्री मुक्ति के समर्थक प्रतीत नहीं हुए। ' संभवतः, पंडितजी इस ऐतिहासिक तथ्य पर ध्यान नहीं दे पाये कि स्त्री मुक्ति और केवली मुक्ति के प्रश्न ही 6 - 7वीं सदी के पूर्व किसी भी श्वेताम्बर - दिगम्बर ग्रंथ में चर्चित नहीं हैं। दिगंबर परंपरा में सर्वप्रथम कुन्दकुन्द ने सुत्तपाहुड के कुन्दकुन्दकृत होने में ही संदेह प्रकट किया। दूसरे, वे कुन्दकुन्द को छठवीं शती पूर्व का नहीं मानते हैं। यापनीय मान्यताओं की चर्चा करते हुए अग्रिम अध्याय में हमने इस संबंध में विस्तृत चर्चा की है।
अतः, भगवती आराधना में स्त्री मुक्ति और केवली भुक्ति का उल्लेख न देखकर उसे एक तीसरी परंपरा का ग्रंथ कहते हुए भी उसे यापनीय परंपरा का नहीं मानना, आदरणीय पंडितजी के साम्प्रदायिक अभिनिवेश का ही सूचक है । जब मूलग्रंथ में यह चर्चा ही नहीं थी, तो टीकाकार अपराजित ने भी उसे नहीं उठाया, किन्तु इससे वे स्त्री मुक्ति के विरोधी नहीं कहे जा सकते हैं । यापनीयों के अतिरिक्त ऐसा कोई भी जैन - सम्प्रदाय नहीं था, जो अचेलता का समर्थक होते हुए भी आगमों को मान्य कर रहा था । यदि स्त्री मुक्ति और केवली भुक्ति का स्पष्ट समर्थन या निषेध ही उस ग्रंथ के किसी सम्प्रदाय विशेष से संबंधित होने का आधार हो तो फिर अनेक ग्रंथ, जिन्हें आज दिगम्बर परंपरा अपना ग्रंथ मान रही है, उन्हें दिगम्बर परंपरा का ग्रंथ नहीं मानना होगा । कुन्दकुन्द के ही समयसार, नियमसार, पंचास्तिकाय में स्त्री-मुक्ति और केवल भुक्ति का खण्डन नहीं मिलता है। क्या इसके अभाव में इनके दिगम्बर आचार्य द्वारा रचित होने में कोई संदेह किया जाना चाहिए ?
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श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय परंपरा के प्राचीन अनेक ग्रंथ ऐसे हैं, जिनमें इन दोनों अवधारणाओं के समर्थन या निषेध के संबंध में कुछ नहीं कहा गया है। मात्र स्त्री-मुक्ति और केवल भुक्ति की समर्थक गाथाओं के अभाव के कारण उसे यापनीय मानने से इंकार किया जा सकता है। पंडित नाथूराम प्रेमी अपने लेख 'यापनीयों का साहित्य' में स्पष्ट रूप से यह स्वीकार करते हैं कि भगवती आराधना के कर्त्ता शिवार्य और टीकाकार अपराजित सूरि यापनीय थे । इस संबंध में हम उनके तर्कों को उनके ही शब्दों में प्रस्तुत कर रहे हैं । वे लिखते हैं कि
अपराजित के विषय में विचार करते समय मूल भगवती आराधना में भी कुछ