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________________ 99 7- शिवार्य और उनकी भगवती आराधना ( ईस्वी सन् 7वीं शती) 'आराधना' या 'भगवती आराधना' यापनीय परंपरा का एक और महत्वपूर्ण ग्रंथ है । इसके रचयिता शिवार्य हैं । ग्रंथ के अंत में ग्रंथकार ने स्वयं लिखा है कि "आर्य जिननंदी गणि, आर्य सर्वगुप्त गणि और आर्य मित्रनंदी के चरणों के निकट सूत्रों और उनके अभिप्राय को अच्छी तरह से समझ करके पूर्वाचार्यों द्वारा निबद्ध की हुई रचनाओं के आधार से पाणितल भोजी शिवार्य ने यह आराधना अपनी शक्ति के 2 अनुसार रची।' ग्रंथकर्त्ता ने अपने और अपने तीनों गुरुओं के लिए 'आर्य' विशेषण का प्रयोग किया है, साथ ही जिणनन्दी और सर्वगुप्त को गणि भी कहा है। मथुरा एवं विदिशा के अभिलेखों एवं कल्प तथा नन्दीसूत्र की स्थविरावलियों से हमें यह ज्ञात होता है कि ईसा की पाँचवीं शती तक मुनियों के नामों के आगे 'आर्य' तथा साध्वी के लिए 'आर्या' शब्द के प्रयोग का प्रचलन था तथा आचार्य को गणि शब्द से अभिसूचित किया जाता था ।' विदिशा के अभिलेख में तो आर्यकुल का भी उल्लेख है।' यह आर्यकुल यापनीय था- यह बात हम पूर्व में बता चुके हैं । विदिशा के एक अभिलेख' में आर्यचन्द्र के लिए 'पाणितल भोजी' विशेषण का प्रयोग हुआ है । आराधना में शिवार्य ने भी अपने लिए 'पाणितल भोजी' का विशेषण प्रयोग किया है । अतः, दोनों एक ही परंपरा के प्रतीत होते हैं। मुनि के नाम के साथ 'आर्य' विशेषण का प्रयोग श्वेताम्बर और यापनीय परंपराओं में लगभग छठवीं-सातवीं शती तक प्रचलित रहा है, जबकि दिगम्बर परंपरा में इसका प्रयोग नहीं देखा जाता है । शिवार्य के साथ लगे हुए 'आर्य' और 'पाणितल भोजी' विशेषण उन्हें यापनीय आर्यकुल से संबंधित सिद्ध करते हैं । उनके गुरुओं के नन्दि नामान्तक नामों के आधार पर भी उनका संबंध यापनीय परंपरा के नंदीसंघ से माना जा सकता है । जिनसेन ने अपने आदिपुराण में इन्हें शिवकोटि कहा है।' यद्यपि कुछ दिगम्बर ग्रन्थों में शिवकोटि को समन्तभद्र का शिष्य बताने का प्रयास किया गया है, ' किन्तु यह मत भ्रामक है। पं. नाथूरामजी प्रेमी ने इस मत का अपने ग्रंथ 'आराधना और उनकी टीका' नामक लेख में विस्तारपूर्वक खण्डन किया है।' शाकटायन ने शिवार्य के गुरु सर्वगुप्त को बड़ा भारी व्याख्याता बताया है। चूंकि शाकटायन भी यापनीय है, अतः
SR No.006191
Book TitleJain Sahityakash Ke Aalokit Nakshatra Prachin Jainacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages228
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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