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उपरोक्त दो प्रश्नों पर लेखक डॉ. श्री प्रकाश पाण्डेय से मतभेद रखते हुए भी मैं इतना अवश्य कह सकता हूँ कि उन्होंने इस कृति का प्रणयन पक्ष व्यामोह से ऊपर उठकर तटस्थ दृष्टि से किया है। यह कृति सिद्धसेन दिवाकर के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को उजागर करने में सफल सिद्ध होगी, यह मेरा पूर्ण विश्वास है। उन्होंने कतिपय बिन्दुओं पर मतवैभिन्न्य होते हुए भी इस कृति के लिए भूमिका लिखने का आग्रह किया, अतः मैं उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ तथा यह अपेक्षा करता हूँ कि भविष्य में भी वे जैन विद्या के ग्रंथभण्डारकोअपनी नवीन-नवीन कृतियों से आपूरित करते रहेंगे। 28 नवंबर, 1997
___ डॉ. सागरमल जैन वाराणसी संदर्भ 1. दखें - सन्मति प्रकरण, सम्पादक-पं. सुखलालजी संघवी, ज्ञानोदय टस्ट,
अहमदाबाद, प्रस्तावना, पृष्ठ 6 से 16. 2अ. दंसणगाही- दंसणणाणप्पभावगणि सत्थाणि सिद्धिविणिच्छय - संमतिमादि
गेण्हंतोअसंथरमाणे जंअकप्पियंपडिसेवति जयणाते तत्थसो सुद्धो अप्रायश्चित्तीभवतीत्यर्थः। - निशीथचूर्णि, भाग 1, पृष्ठ 162. दसणप्पभावगाणसत्थाणसम्मदियादिसुतणाणे यजो विसारदो
णिस्सकियसुत्तथो त्तिवुत्तं भवति। - वही, भाग 3, पृष्ठ 202. ब. आयरिय सिद्धसेणेणसम्मई एपइट्ठिअजसेणं।
दूसमणिसादिवागर कप्पत्तणओ तदक्खेणं॥ -पंचवस्तु (हरभिद्र) 1048. स. श्रीदशाश्रुतस्कन्धमूल, नियुक्ति, चूर्णिसह, पृ. 16 (श्रीमणिविजयग्रंथमाला
नं. 14, सं 2011) (यहाँ सिद्धसेन को गुरु से भिन्न अर्थ करने वाला भाव
अभिनय का दोषी बताया गया है)। ... पूर्वाचार्य विरचितेषु सन्मति-नयावतारादिषु ...। (ज्ञातव्य है कि नयावतार ही कालक्रम में - न्यायावतार होता है) - द्वादशारं नयचक्रम्, (मल्लवादि)। भावनगरस्या श्री आत्मानन्द सभा,
1988, तृतीय विभाग, पृ. 886. 3अ. अणेण सम्मदसुत्तेणसह कथमिदं वक्खाणं ण विरूज्झदे।
(ज्ञातव्य है कि इसके पूर्व सन्मतिसूत्र की गाथा 6 उद्धृत है) - धवला, टीका समन्वित, षट्खण्डागम- 1/1/1, पुस्तक 1, पृष्ठ 16.
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