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________________ जैन-विचारणा में द्रव्य पर्याय से अभिन्न रही है और यदि इसी अभिन्नता के आधार पर यह कहा जाए कि क्रिया (पर्याय) से भिन्न कर्ता (द्रव्य) नहीं है, तो उसमें कहां विरोध रह जाता है? द्रव्य और पर्याय, ये आत्मा के सम्बंध में दो दृष्टिकोण हैं, दो विविक्ति सत्ताएं नहीं हैं। उनकी इस अभिन्नता के आधार पर यह भी कहा जा सकता है कि जैनदर्शन का आत्मा भी सदैव ही परिवर्तनशील है। फिर, अविच्छिन्न चेतना-प्रवाह (परिवर्तनों की परम्परा) की दृष्टि से आत्मा को शाश्वत मानने में बौद्ध-दर्शन को भी कोई बाधा नहीं है, क्योंकि उसके अनुसार भी प्रत्येक चेतन-धारा का प्रवाह बना रहता है। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बुद्ध के मन्तव्य में भी चेतना-प्रवाह या चेतना-परम्परा की दृष्टि से आत्मा नित्य (अनुच्छेद) है और परिवर्तनशीलता की दृष्टि से आत्मा अनित्य (अशाश्वत) है। जैन-परम्परा में द्रव्यार्थिक-नय का आगमिक-नाम अव्युच्छिति-नय और पर्यायार्थिकनय का व्युच्छिति-नय भी है। हमारी सम्मति में अव्युच्छिति-नय का तात्पर्य है- प्रवाह या परम्परा की अपेक्षा से और व्युच्छिति-नय का तात्पर्य है- अवस्था-विशेष की अपेक्षा से। यदि इस आधार पर कहा जाए कि जैन-दर्शन चेतन-धारा की अपेक्षा से (अव्युच्छितिनय से) आत्मा को नित्य और चेतन अवस्था (व्युच्छिति-नय) की दृष्टि से आत्मा को अनित्य मानता है, तो वह अपने को बौद्ध-दर्शन के निकट ही खड़ा पाता है। गीता का दृष्टिकोण आत्मा की नित्यता के प्रश्न पर गीता का दृष्टिकोण बिल्कुल स्पष्ट है। गीता में आत्मा को स्पष्टरूप से नित्य कहा गया है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जीवात्मा के ये सभी शरीर नाशवान् कहे गए हैं, लेकिन यह जीवात्मा तो अविनाशी है। न तो यह कभी उत्पन्न होता है और न मरता है। यह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। वह आत्मा अच्छेद्य, आदाह्य, अक्लेद्य, अशोष्य, नित्य, सर्वव्यापक, अचल और सनातन है। इस आत्मा को जो मारनेवाला समझता है और जो दूसरा (कोई) इस आत्मा को देह के नाश से मैं नष्ट हो गया- ऐसे नष्ट हुआ मानता है, अर्थात् हननक्रिया का कर्म मानता है, वे दोनों ही अहंप्रत्यय के विषयभूत आत्मा को अविवेक के कारण नहीं जानते। यह आत्मा उत्पन्न नहीं होता और मरता भी नहीं। इस प्रकार, गीता आत्मा की नित्यता का प्रतिपादन करती है। जैन, बौद्ध और गीता के दृष्टिकोणों की तुलना जैन-दर्शन के समान गीता भी तात्त्विक-आत्मा की नित्यता का प्रतिपादन (52
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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