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प्रस्तुतिकरण की कमी हमारी अपनी ही हो सकती है।
उनका कहना था कि बुद्धत्व की अवधारणा के संदर्भ में आपके द्वारा प्रस्तुत इन सभी असंगतियों का निराकरण चित्तसन्तति या चित्तधारा के रूप में किया जा सकता है। हम बुद्ध को व्यक्ति न मानें, अपितु परार्थ क्रियाकारित्व की एक प्रक्रिया मानें। बुद्ध एक नित्य-व्यक्तित्व (An Eternal Personality) नहीं अपितु, एक प्रक्रिया (A Process) है। बुद्ध के जो तीन या चार काय माने गए हैं, वे इस प्रक्रिया के उपाय या साधन हैं। धर्मकाय की नित्यता की जो बात कही गई है, वह स्थितिगत नित्यता नहीं अपितु क्रियागत नित्यता है। जिस प्रकार नदी का प्रवाह युगों-युगों तक चलता रहता है, यद्यपि उसमें क्षण-क्षण परिवर्तन और नवीनता होती रहती है। ठीक उसी प्रकार बुद्ध या बोधिसत्व भी एक चित्तधारा है, जो उपायों के माध्यम से सदैव परार्थ में लगी रहती है।
बुद्ध के संदर्भ में जो त्रिकायों की अवधारणा है उसका अर्थ यह नहीं कि कोई नित्य आत्मसत्ता है, जो इन कार्यों को धारण करती है। वस्तुतः ये काय परार्थ के साधन या उपाय हैं। जिस चित्तधारा से बोधिचित्त का उत्पाद होता है, वह बोधिचित्त इन कार्यों के माध्यम से कार्य करता है। बुद्धत्व कोई व्यक्ति नहीं है, अपितु वह एक प्रक्रिया (A Process) है। धर्म की नित्यता मार्ग की नित्यता है। धर्म भी कोई वस्तु नहीं, अपितु प्रक्रिया है। जब हम धर्मकाय की नित्यता की बात करते हैं, तो वह व्यक्ति की नित्यता नहीं अपितु प्रक्रिया विशेष की नित्यता है। धर्मकाय नित्य है, इसका तात्पर्य यही है कि धर्म या परिनिर्वाण के उपाय नित्य हैं। बौद्धदर्शन में कार्यों की इस अवधारणा को भी हमें इसी उपाय प्रक्रिया के रूप में समझना चाहिए। ऐसा नहीं मानना चाहिए कि कोई नित्य आत्मा है, जो इन्हें धारण करती है। अपितु इन्हें परार्थक्रियाकारित्व के उपायों के रूप में समझना चाहिए और यह मानना चाहिए कि परार्थक्रियाकारित्व ही बुद्धत्व है।
बुद्ध के त्रिकायों के नित्य होने का अर्थ इतना ही है कि परार्थक्रियाकारित्व की प्रक्रिया सदैव-सदैव रहती है। वह चित्त जिसने लोकमंगल का संकल्प ले रखा है, जब तक वह संकल्प पूर्ण नहीं होता है, अपने इस संकल्प की क्रियान्विति के रूप में परार्थक्रिया करता रहता है। साथ ही वह संकल्प लेने वाला चित्त भी आपकी, हमारी या किसी की भी चित्तधारा की संतान हो सकता है, क्योंकि सभी चित्तधाराओं में बोधिचित्त के उत्पाद की सम्भावना है। इसी आधार पर यह कहा जाता है कि सभी जीव बुद्ध-बीज हैं। महायान में जो अनन्त बुद्धों की कल्पना है, वह कल्पना भी व्यक्ति की कल्पना नहीं,
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