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________________ कर पा रहे थे कि अनात्मवादी बौद्ध दर्शन के सांचे में इन विसंगतियों का निराकरण कैसे सम्भव हो सकता है? इस सम्बंध में हमने बौद्ध-विद्या एवं दर्शन के विद्वानों से विचारविमर्श किए, परंतु ऐसा कोई समाधान नहीं मिला जो हमारे मानस को पूर्ण संतोष दे सके। इन्हीं समस्याओं को लेकर हमनें अन्ततोगत्वा वाराणसी के बौद्धधर्म एवं दर्शन के वरिष्ठ विद्वान् पं. जगन्नाथजी उपाध्याय की सेवा में उपस्थित होने का निश्चय किया और एक दिन उनके पास पहुंच ही गए। हमने उनसे इन समस्याओं के संदर्भ में लगभग दो घंटे तक चर्चा की। इन समस्याओं के सम्बंध में उनसे हमें जो उत्तर प्राप्त हुए, उनसे न केवल हमें संतोष ही हुआ, बल्कि यह भी बोध हुआ कि पं. जगन्नाथजी उपाध्याय ऐसे बहुश्रुत विद्वान् हैं, जो बौद्धधर्म एवं दर्शन को उसके ही धरातल पर खड़े होकर समझने और उसके सम्बंध में उठाई गई समस्याओं का उसकी ही दृष्टि से समाधान देने की सामर्थ्य रखते हैं। सम्भवतः उनके स्थान पर दूसरा कोई पण्डित होता तो वह इन समस्याओं को बौद्धदर्शन की कमजोरी कहकर अलग हो जाता। किंतु उन्होंने जो प्रत्युत्तर दिए, वे इस बात के प्रमाण हैं कि उन्होंने निष्ठापूर्वक श्रमण परम्परा का और विशेष रूप से बौद्ध परम्परा का गम्भीर अध्ययन किया था। यद्यपि नित्य आत्म तत्त्व के अभाव में कर्म-फल, पुनर्जन्म, निर्वाण आदि की समस्याओं का समाधान बौद्धदर्शन के अनात्मवादी और क्षणिक ढांचे में कैसे सम्भव है ? इस समस्या के समाधान के लिए प्रो. हिरियन्ना ने अपने ग्रंथ 'भारतीय दर्शन के मूलतत्त्व' (Elements of Indian Philosophy) में किसी सीमा तक एक समाधान देने का प्रयत्न किया है, किंतु पण्डित जगन्नाथजी उपाध्याय ने बुद्धत्व की समस्याओं का इसी दृष्टि से जो समाधान प्रस्तुत किया उसके आधार पर वे निश्चित ही बौद्ध दर्शन के प्रत्युत्पन्नमति के श्रेष्ठ दार्शनिक कहे जा सकते हैं, क्योंकि 'बुद्ध' की अवधारणा के संदर्भ में उपर्युक्त समस्याओं का समाधान न तो हमें ग्रंथों से और न विद्वानों से प्राप्त हो सका था। उपर्युक्त समस्याओं के संदर्भ से प्रज्ञापुरुष पं. जगन्नाथजी उपाध्याय ने जो समाधान दिए थे, उनकी भाषा चाहे आज हमारी अपनी हो, परंतु विचार उनके ही हैं। वस्तुतः हम उनकी ही बात अपनी भाषा में व्यक्त कर रहे हैं- यदि हमें इस बात का जरा भी एहसास होता कि इतने सुंदर समाधान प्राप्त होंगे और पं. जी हम लोगों के बीच से इतनी जल्दी विदा हो जाएंगे तो हम उनकी वाणी को रिकार्ड करने की पूर्ण व्यवस्था कर लेते, किंतु आज हमारे बीच न तो वह प्रतिभा है और न इस सम्बंध में उनके शब्द ही हैं, फिर भी हम जो कुछ लिख रहे हैं, वह उनका ही कथन है । यद्यपि 42
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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