SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बौद्धदर्शन में बुद्ध 'व्यक्ति' नहीं 'प्रक्रिया' (एक संस्मरण) मेरे शोध - छात्र श्री रमेशचंद्र गुप्त 'तीर्थंकर, बुद्ध और अवतार की अवधारणा' पर शोध कार्य कर रहे थे। हम लोगों के सामने मुख्य समस्या थी कि ईश्वर और आत्मा की सत्ता को अस्वीकार करने वाले क्षणिकवादी बौद्ध दर्शन में बुद्ध, बोधिसत्व और त्रिकाय की अवधारणाओं की संगतिपूर्ण व्याख्या कैसे सम्भव है ? जब किसी नित्य आत्मा की सत्ता को ही स्वीकार नहीं किया जा सकता है, तो हम कैसे कह सकते हैं कि कोई व्यक्ति बुद्ध बनता है। पुनः जब आत्मा ही नहीं है तब बोधिचित्त का उत्पात किसमें होता है? पुनः बौद्ध दर्शन यह भी मानता है कि प्रत्येक सत्व बुद्ध - बीज है, किंतु जब सत्व की ही क्षण मात्र से अधिक सत्ता नहीं है तो वह बुद्ध - बीज कैसे वह बोधिसत्व होकर विभिन्न जन्मों में बोधिपरिमिताओं की साधना करता हुआ बुद्धत्व को प्राप्त करेगा? यदि सत्ता मात्र क्षणहै तो क्या बुद्ध का अस्तित्त्व भी क्षण - जीवी है ? ' महासंधिकों ने तो बुद्ध के रुपकाय को भी अमर और उसकी आयु को अनन्त माना है। 2 सम्पुण्डरीक में भी बुद्ध की आयु अपरिमित कही गई है। किंतु यदि बुद्ध का रुपकाय अमर और आयु अपरिमित या अनन्त है तो फिर बौद्ध दर्शन की क्षणिकवादी अवधारणा कैसे सुसंगत सिद्ध होगी? पुनः बौद्धदर्शन में यह भी माना जाता है कि बुद्ध निर्माणकाय के द्वारा नाना रूपों प्रकट होकर लोहित के रूप में उपदेश करते हैं, तो फिर यह समस्या स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होती है कि किसी नित्य-तत्त्व के अभाव में इस निर्माणकाय की रचना कौन करता है ? यदि विशुद्धिमग्ग की भाषा में हम मात्र क्रिया की सत्ता मानें, कर्ता की नहीं, तो फिर कोई व्यक्ति मार्ग का उपदेशक कैसे हो सकता है ? धर्मचक्र का प्रवर्त्तन कौन करता है ? वह कौन सा सत्व या चित्त है, जो बुद्धत्व को प्राप्त होता है और परम कारुणिक होकर जन-जन के कल्याण के लिए युगों-युगों तक प्रयत्नशील बना रहता है? महायानसूत्रालंकार में यह भी कहा गया है कि बुद्ध के तीनों काय, आश्रय और कर्म से निर्विशेष हैं। इन तीनों कार्यों में तीन प्रकार की नित्यता है, जिनके कारण तथागत नित्य कहलाते हैं। 4 समस्या यह है कि एकान्तरूप से क्षणिकवादी बौद्ध के दर्शन में नित्य निकायों की अवधारणा कैसे सम्भव हो सकती है? ये सभी समस्याएं हमारे मानस को झकझोर रही थीं और हम यह निश्चित नहीं 41
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy