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में इस प्रश्न के उत्तर अलग-अलग हो सकते हैं। जैसे शरीर और चेतना को विचार के क्षेत्र में पृथक्-पृथक् किया जा सकता है, किंतु तथ्यात्मक क्षेत्र में हम उन्हें एक-दूसरे से पृथके नहीं कर सकते। वे चिंतन के क्षेत्र में भिन्न माने जा सकते हैं, लेकिन जागतिक अनुभव के क्षेत्र में तो अभिन्न है, क्योंकि जगत् में शरीर के पृथक् कहीं चेतना उपलब्ध नहीं होती है। पुनः मृत व्यक्ति के संदर्भ में शरीर की चेतना से पृथक् माना जा सकता है, किंतु जीवित व्यक्ति के संदर्भ में उन्हें एक-दूसरे से पृथक् नहीं माना जा सकता। अतः महावीर और परवर्ती जैन आचार्यों ने कहा कि जीव और शरीर भिन्न-भिन्न भी हैं और
अभिन्न भी हैं। इसी प्रकार व्यावहारिक जीवन में यदि यह पूछा जाए कि सोना अच्छा है . या जागना अच्छा है, तो इस प्रश्न का कोई भी सही उत्तर जब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक कि यह स्पष्ट न हो कि सोने और जागने से प्रश्नकर्ता का क्या तात्पर्य है। पुनः यह बात किस प्रसंग में और किस व्यक्ति के सम्बंध में पूछी जा रही है इसका भी महत्व होगा। उदाहरण के लिए सोना कई उद्देश्यों में हो सकता है- शरीर की थकावट मिटाकर स्फूर्ति प्राप्त करने के लिए सोना या आलस्यवश सोना, इसी प्रकार सोने का कई स्थिति में अर्थ हो सकता है- रात्रि में सोना, दिन में सोना, कक्षा में सोना। पुनः सोने वाले व्यक्ति कई प्रकार के हो सकते हैं- हिंसक, अत्याचारी और दुष्ट अथवा सज्जन, सदाचारी और सेवाभावी। यहां किसलिए, कब और किसका यह सभी तथ्य सोने या जागने के तात्पर्य के साथ जुड़े हुए हैं। इनका विश्लेषण किए बिना हम निरपेक्ष रूप से यह नहीं कह सकते हैं कि सोना अच्छा है या बुरा है। शारीरिक स्फूर्ति के लिए रात्रि में सोना अच्छा हो सकता है, जबकि आलस्यवश दिन में सोना बुरा हो सकता है। भगवती सूत्र में जयंति ने जब महावीर से यही प्रश्न पूछा था तो उन्होंने कहा था कि दुराचारी का सोना अच्छा है और सदाचारी का जागना अच्छा है। विभज्यवाद अन्य कुछ नहीं अपितु प्रश्नों या प्रत्ययों का विश्लेषण करके उन्हें सापेक्ष रूप से स्पष्ट करना है। आज का भाषा-विश्लेषण भी प्रत्ययों या शब्दों के अर्थ का विश्लेषण करके आनुभविक संदर्भ में उनकी व्याख्या करता है। निष्कर्षों में आंशिक भिन्नता के होते हुए भी पद्धति की दृष्टि से विभज्यवाद और भाषाविश्लेषण में समानता है और इसी आधार पर हम यह कह सकते हैं कि आज से 2500 वर्ष पूर्व प्रस्तुत महावीर और बुद्ध का विभज्यवाद समकालीन भाषा-विश्लेषणवाद का पूर्वज है।
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