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अव्याकृत अर्थात् उत्तर के अयोग्य कह देना।' बुद्ध ने तत्त्वमीमांसीय प्रश्नों के संदर्भ में मुख्यतः अव्याकृतवाद और विभज्यवाद की पद्धति को अपनाया। महावीर ने भी किसी सीमा तक इन दोनों पद्धतियों को स्वीकार किया। फिर भी परवर्ती बौद्ध दार्शनिकों की दृष्टि में अव्याकृतता का सिद्धांत प्रमुख और विभज्यवाद (विश्लेषणवाद) गौण बन गया और अंत में शून्यवाद का विकास हुआ, जिसमें विभज्यवादी (विश्लेषणवादी) पद्धति सत्ता की अव्याकृतता (शून्यता) का साधन बन गई। जबकि परवर्ती जैन दार्शनिकों ने इसी विभज्यवाद (विश्लेषणवाद) के आधार पर स्याद्वाद और सप्तभंगी का विकास किया, जिसमें अव्याकतवाद अवक्तव्य-भंग के रूप से सप्तभंगी का एक भंग मात्र रह गया और उस अवक्तव्यता को भी सापेक्ष रूप में स्वीकार किया गया। मात्र यही नहीं, जैन आचार्यों ने एकांशवाद की पद्धति को अपने नए सिद्धांत के साथ समायोजित करके उसे भी स्याद्वाद के अधीन कर लिया। जैनों के स्याद्वाद और नयवाद में किस प्रकार समकालीन भाषाविश्लेषणवाद के तत्त्व उपस्थित है, इसकी चर्चा तो हम यथाप्रसंग करेंगे ही, यहां इस प्रास्तविक कथन में मात्र इतना ही बताना चाहते हैं कि भाषा-विश्लेषण की पद्धति के बीज विभज्यवाद के रूप में किस प्रकार ईसा की 6 ठी शताब्दी पूर्व भी जैन और बौद्ध परम्पराओं में उपस्थित थे। विभज्यवाद का शाब्दिक अर्थ भी विश्लेषणवाद (Analytic-method) ही है। वस्तुतः जैन और बौद्ध परम्पराओं में स्वीकृत विभज्यवाद, जिसका परवर्ती विकास क्रमशः स्याद्वाद और शून्यवाद में हुआ, मूलतः विश्लेषण की पद्धति है और इस रूप में वह समकालीन पाश्चात्य भाषा-विश्लेषण का ही पूर्वरूप या अग्रह है।
विभज्यवाद को स्पष्ट करने के लिए यहां हम कुछ दार्शनिक और व्यवहारिक प्रश्न को लेंगे और देखेंगे कि विभज्यवादी उसका विश्लेषण किस प्रकार करता है। मान लीजिए- सिकी ने प्रश्न किया कि शरीर और चेतना शरीर और जीव या आत्मा भिन्नभिन्न है या अभिन्न है? विभज्यवादी इसका सीधा उत्तर न देकर पहले तो यह जानना चाहेगा कि भिन्नता अथवा अभिन्नता से उसका क्या तात्पर्य है? दूसरे यह कि यह भिन्नता
और अभिन्नता किस संदर्भ में पूछी जा रही है? भिन्नता से उसका तात्पर्य तथ्यात्मक भिन्नता से है अथवा वैचारिक या प्रत्ययात्मक भिन्नता से है? पुनः यह भिन्नता किस संदर्भ में पूछी गई है- आनुभविक जगत् के संदर्भ में या अन्य किसी अति-लौकिक के संदर्भ में पूछी जा रही है? क्योंकि भिन्नता शब्द के प्रत्येक तात्पर्य के आधार पर और प्रत्येक संदर्भ
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