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में हुआ।
__ जहां तक जैन और बौद्ध प्रमाणशास्त्र का प्रश्न है, प्राचीन जैन आगमसाहित्य और बौद्ध त्रिपिटक में हमें प्रमाणशास्त्र संबंधी विशेष विवेचनाएं उपलब्ध नहीं होती हैं। परवर्ती जैन आगमों समवायांग, अनुयोगद्वारसूत्र और नन्दीसूत्र में ज्ञानमीमांसा की तो विस्तृत चर्चा है, किंतु प्रमाणशास्त्र संबंधी चर्चा का उनमें भी कुछ संकेतों के अतिरिक्त प्रायः अभाव ही है। इस प्रकार पालि त्रिपिटक और अर्द्धमागधी आगमों में प्रमाणशास्त्र संबंधी छुटपुट शब्दों यथा तक्क, विमंसी, पमाण, हेतु व्यवसाय आदि के प्रयोग तो मिल जाते हैं, किंतु एक सुव्यवस्थित प्रमाणशास्त्र की उपलब्धि नहीं होती है। बौद्ध परम्परा में सर्वप्रथम नागार्जुन ने लगभग ईसा की दूसरी शताब्दी में शून्यवाद की स्थापना के साथ विग्रहव्यावर्तनी और वैदल्यसूत्र में प्रमाणों का स्पष्ट रूप से खण्डन किया है। बौद्ध परम्परा में प्रमाणशास्त्र के विकास का मुख्य श्रेय विज्ञानवादी योगाचार दर्शन को जाता है। बौद्ध परम्परा में दिनांग (चौथी-पांचवीं शती) को बौद्ध प्रमाण-शास्त्र प्रस्तोता माना जा सकता है।
___ मल्लवादी (चौथी-पांचवीं शती) आदि प्राचीन जैन आचार्यों ने बौद्ध प्रमाणमीमांसा के खण्डन में पूर्वपक्ष के रूप में दिनांग के ग्रंथों को ही आधार बनाया है। मल्लवादी की कृति द्वादशारनयचक्र में दिनांग की अवधारणाओं को उद्धृत करके उनकी समीक्षा की गई है।
दिनांग के गुरु बौद्ध विज्ञानवादी असंग के लघुभ्राता वसुबंध रहे हैं। यद्यपि वसुबंधु के ग्रंथों में भीन्यायशास्त्र सम्बंधी कुछ विवेचन उपलब्ध होते हैं, फिर भी प्रमाणशास्त्र की विवेचना की दृष्टि से दिनांग का प्रमाणसमुच्चय ही बौद्ध परम्परा का प्रथम स्वतंत्र और महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। परवर्ती जैन और जैनेतर दार्शनिकों ने बौद्ध प्रमाणमीमांसा के खण्डन में इसे ही आधार बनाया है। दिनांग के पश्चात् बौद्ध न्याय के प्रस्तोताओं में धर्मकीर्ति प्रमुख माने जाते हैं। धर्मकीर्ति के सत्ताकाल को लेकर विद्वानों में कुछ मतभेद है, फिर भी इतना सुनिश्चित है कि वे ईसा की सातवीं शताब्दी के बौद्ध विद्वान् हैं। जैन विद्वान् पं. महेंद्र कुमार न्यायाचार्य ने उनका काल 620 ईस्वी से 690 ईस्वी माना है, जो समुचित ही प्रतीत होता है। यद्यपि धर्मकीर्ति के पश्चात् भी धर्मोत्तर, अर्चट, शांतरक्षित, कमलशील, देवेंद्रबुद्धि, शाक्यबुद्धि, प्रज्ञाकरगुप्त, रविगुप्त, कर्नकगौमी आदि अनेक बौद्ध आचार्य हुए हैं, जिन्होंने बौद्ध प्रमाणमीमांसा पर ग्रंथ लिखे हैं, किंतु प्रस्तुत विवेचना में हम
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