SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थात् 'ऐसा है' और निषेधपरक 'ऐसा नहीं है', यह उभय रूप ग्रहण करने पर ही पूर्ण अर्थबोध सम्भव होता है। 8. जहाँ तक विभज्यवादी दृष्टिकोण का प्रश्न है बौद्ध और जैन दोनों ही विभज्यवादी हैं दोनों ही एकांतिक प्रतिस्थापनाओं के विरोधी हैं और विश्लेषणपूर्वक उत्तर देने की बात करते हैं। 9. जैनों ने अपनी अनैकांतिक दृष्टि के कारण बौद्धों की अनेक अवधारणाओं का उनकी विरोधी अवधारणाओं के साथ समन्वय किया है। बौद्ध और जैन प्रमाणमीमांसा एक तुलनात्मक अध्ययन जैन एवं बौद्ध प्रमाणशास्त्र का ऐतिहासिक विकासक्रम जैन और बौद्ध दर्शन भारतीय श्रमण संस्कृति के दर्शन हैं। आचारशास्त्र के सिद्धांत पक्ष की अपेक्षा से दोनों में बहुत कुछ समानताएं हैं, किंतु जहां तक तत्त्वमीमांसीय और प्रमाणशास्त्रीय विवेचनों का प्रश्न है, दोनों में कुछ समानताएं और कुछ अंतर परिलक्षित होते हैं । जैन और बौद्ध दोनों ही दर्शन एकांतवाद के विरोधी हैं। दोनों के दार्शनिक विवेचन के मूल में विभज्यवादी दृष्टिकोण समाहित है। तत्त्वमीमांसा एवं आचारमीमांसा के क्षेत्र में बौद्ध दर्शन जहां एकांतवाद का निषेध करके मध्यम - प्रतिपदा की बात करता है, वहीं जैन दर्शन एकांतवाद का निषेध कर अनेकांतवाद की अवधारणा को प्रस्तुत करता है। इस प्रकार दोनों दर्शनों की मूलभूत दृष्टि अर्थात् एकांतवाद के निषेध में समनता है, किंतु अपनी दार्शनिक विवेचनाओं के अग्रिम चरणों में दोनों दर्शनों की मान्यताओं में अंतर देखा जाता है। उसका कारण यह है कि जहां एकांतवाद से बचने के लिए बौद्धदर्शन निषेधपरक रहा, वहां जैन दर्शन ने विधिमुख से अपनी बात कही । जैन दर्शन का चरम विकास उसके अनेकांतवाद और स्याद्वाद के सिद्धांत के रूप में हुआ, वहीं बौद्ध दर्शन का चरम विकास अपनी मध्यमप्रतिपदा पर आधारित होते हुए भी अंततः विज्ञानवाद और शून्यवाद के रूप 19
SR No.006189
Book TitleBauddh Dharm Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy