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ब. 1.
-वररूचिकृत 'प्राकृतप्रकाश' शेषं शौरसेनीवत् (8/4/302) मागध्यां यदुक्तं, ततोअन्यच्छौरसेनीवद् द्रष्टव्यम्। शेषं शौरसेनीवत् (8/4/323) पैशाच्यां यदुक्तं, ततो अन्यच्छेषं पैशाच्यां शौरसेनीवद् भवति। . शौरसेनीवत् (8/4/446) अपभ्रंशे प्रायः शौरसेनीवत् कार्यं भवति। अपभ्रंशभाषायां प्रायः शौरसेनीभाषातुल्यं कार्यं जायते; शौरसेनी भाषायाः ये नियमाः सन्ति तेषां प्रवृत्तिरपभ्रंशभाषायामपि जायते।
-हेमचन्द्रकृत 'प्राकृत व्याकरण'
अतः, इस प्रसंग में यह आवश्यक है कि हम सर्वप्रथम इन सूत्रों में प्रकृति' शब्द का वास्तविक तात्पर्य क्या है, इसे समझें। यदि हम यहाँ प्रकृति का अर्थ उद्भव का कारण मानते हैं, तो निश्चित ही इन सूत्रों से यह फलित होता है कि मागधी या पैशाची का उद्भव शौरसेनी से हुआ; किन्तु शौरसेनी को एकमात्र प्राचीन भाषा मानने वाले, मागधी और पैशाची को उससे उद्धृत क्यों नहीं कहते, जिसमें शौरसेनी की प्रकृति संस्कृत बताई गई है। यथा-'शौरसेनी-12/1, टीका-शूरसेनानां भाषा शौरसेनी सा च लक्ष्य-लक्षणाभ्यां स्फुटीक्रियते इत्यवगन्तव्यम्। अधिकारसूत्रमेतदापरिच्छेद समाप्तेः-12/1 प्रकृतिः संस्कृतम्-12/2; टीका-शौरसेन्यां ये शब्दास्तेषां प्रकृतिः संस्कृतम्।-प्राकृतप्रकाश 12/2'। अतः, उक्त सूत्र के आधार पर हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि शौरसेनी प्राकृत संस्कृत भाषा से उत्पन्न हुई है। इस प्रकार, 'प्रकृति' का अर्थ उद्गम-स्थल करने पर उसी 'प्राकृत प्रकाश' के आधार पर यह भी मानना होगा कि मूल भाषा संस्कृत थी
और उसी में से शौरसेनी उत्पन्न हुई। क्या शौरसेनी के पक्षधर इस सत्य को स्वीकार करने को तैयार हैं? भाई सुदीपजी, जो शौरसेनी के पक्षधर हैं और 'प्रकृतिः शौरसेनी' के आधार पर मागधी को शौरसेनी से उत्पन्न बताते हैं, वे स्वयं भी 'प्रकृतिः संस्कृतम्प्राकृत प्रकाश-12/2' के आधार पर यह मानने को तैयार क्यों नहीं कि 'प्रकृति' का