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अर्थात्, मागधी ही मूल भाषा है, जो सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुई थी और न केवल ब्रह्मा (देवता), अपितु बालक और बुद्ध (संबुद्ध महापुरुष) भी इसी भाषा में बोलते हैं। (See-The preface to the Childer's Pali Dictionary)|
इससे यही फलित होता है कि मूल बुद्ध-वचन मागधी प्राकृत भाषा में थे। पाली उसी मागधी का संस्कारित साहित्यिक रूप है, जिसमें कालान्तर में बुद्ध-वचन लिखे गये। वस्तुतः पाली के रूप में मागधी का एक ऐसा संस्करण तैयार किया गया, जिसे संस्कृत के विद्वान् और भिन्न-भिन्न प्रान्तों के लोग भी आसानी से समझ सकें। अतः, बुद्ध-वचन मूलतः मागधी में थे, न कि शौरसेनी में। बौद्ध-त्रिपिटक की पाली और जैन आगमों की अर्धमागधी में कितना साम्य है, यह तो 'सुत्तनिपात' और 'इसिभासियाई' के तुलनात्मक अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। प्राचीन पाली ग्रन्थों की एवं प्राचीन अर्धमागधी आगमों की भाषा में अधिक दूरी नहीं है। जिस समय अर्धमागधी और पाली में ग्रन्थ रचना हो रही थी, उस समय तक शौरसेनी एक बोली थी, न कि एक साहित्यिक भाषा। साहित्यिक भाषा के रूप में उसका जन्म तो ईसा की दूसरी शताब्दी के बाद ही हुआ है। संस्कृत के पश्चात् सर्वप्रथम साहित्यिक भाषा के रूप में यदि कोई भाषा विकसित हुई है, तो वे अर्धमागधी एवं पाली ही हैं, न कि शौरसेनी। शौरसेनी का कोई भी ग्रन्थ या नाटकों के अंश ईसा की दूसरी-तीसरी शती से पूर्व का नहीं है जबकि पाली त्रिपिटक और अर्धमागधी आगम साहित्य के अनेक ग्रन्थ ई.पू. तीसरी-चौथी शती में निर्मित हो चुके थे। 'प्रकृतिः शौरसेनी' का सम्यक् अर्थ ।
जो विद्वान् मागधी या अर्धमागधी को शौरसेनी से परवर्ती एवं उसी से विकसित मानते हैं, वे अपने कथन का आधार वररूचि (लगभग 7वीं शती) के प्राकृत-प्रकाश और हेमचन्द्र (लगभग 12वीं शताब्दी) के प्राकृत-व्याकरण के निम्न सूत्रों को बनाते हैंअ. 1. प्रकृतिः शौरसेनी (10/2)
अस्याःपैशाच्या प्रकृतिःशौरसेनी। स्थितायां शौरसेन्यां पैशाची-लक्षणं
प्रवर्तत्तितव्यम्। 2. प्रकृतिः शौरसेनी (11/2)
अस्याः मागध्याः प्रकृतिः शौरसेनीति वेदीतव्यम्।