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________________ रूपान्तर की। सत्य तो यह है कि अर्धमागधी आगम ही शौरसेनी या महाराष्ट्री में रूपान्तरित हुए, न कि शौरसेनी आगम अर्धमागधी में। अतः, ऐतिहासिक तथ्यों की अवहेलना द्वारा मात्र तथ्यहीन तर्क करना कहाँ तक उचित होगा? बुद्ध वचनों की मूल भाषा मागधी थी, न कि शौरसेनी . शौरसेनी को मूलभाषा एवं मागधी से प्राचीन सिद्ध करने हेतु आदरणीय प्रो. नथमल टाँटियाजी के नाम से यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि 'शौरसेनी पाली भाषा की जननी है, यह मेरा स्पष्ट चिन्तन है। पहले बौद्धों के ग्रन्थ शौरसेनी में थे, जिनको जला दिया गया और फिर पाली में लिखा गया।'-प्राकृतविद्या, जुलाई-सितम्बर1996, पृ.10. टाँटियाजी जैसा बौद्धविद्या का प्रकाण्ड विद्वान् ऐसी कपोल-कल्पित बात कैसे कह सकता है, यह विचारणीय है। क्या ऐसा कोई भी अभिलेखीय या साहित्यिक प्रमाण उपलब्ध है, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मूल बुद्ध-वचन शौरसेनी में थे। यदि ऐसा हो, तो आदरणीय टाँटियाजी या भाई सुदीपजी उसे प्रस्तुत करें, अन्यथा ऐसी आधारहीन बातें करना विद्वानों के लिए शोभनीय नहीं है। यह बात तो बौद्ध विद्वान् स्वीकार करते हैं कि मूल बुद्ध-वचन 'मागधी' में थे और कालान्तर में उनकी भाषा को संस्कारित करके पाली में लिखा गया। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जिस प्रकार मागधी और अर्धमागधी में किञ्चित अन्तर है, उसी प्रकार ‘मागधी' और 'पाली' में भी किञ्चित अन्तर है, वस्तुतः तो पाली भगवान् बुद्ध की मूल भाषा 'मागधी' का ही एक संस्कारित रूप है। यही कारण है कि कुछ विद्वान् पाली को मागधी का ही एक प्रकार मानते हैं, दोनों में बहत अन्तर नहीं है। पाली भाषा संस्कृत और मागधी की मध्यवर्ती भाषा है या मागधी का ही एक साहित्यिक रूप है। यह तो प्रमाण-सिद्ध है कि भगवान् बुद्ध ने मागधी में ही अपने उपदेश दिए थे, क्योंकि उनकी जन्मस्थली और कार्यस्थली-दोनों मगध और उसका निकटवर्ती प्रदेश ही था। बौद्ध विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि मागधी ही बुद्ध-वचन की मूल भाषा है। इस सम्बन्ध में बुद्धघोष का निम्न कथन सबसे बड़ा प्रमाण है सा मागधी मूलभाषा नरायाय आदिकप्पिका। ब्रह्मणी च अस्सुतालापा संबुद्धा चापि भासरे।। .
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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