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________________ निवेदन है कि मागधी के सम्बन्ध में 'प्रकृतिः शौरसेनी' (प्राकृत प्रकाश - 11/2) इस कथन की वे जो व्याख्या कर रहे हैं, वह भ्रान्तिपूर्ण है और वे स्वयं भी शौरसेनी के सम्बन्ध में ‘प्रकृतिः संस्कृतम्’(‘प्राकृत प्रकाश' - 12 / 2 ) इस सूत्र की व्याख्या में 'प्रकृति' का, ’जन्मदात्री’–ऐसा अर्थ अस्वीकार कर चुके हैं। इसकी विस्तृत समीक्षा हमने अग्रिम पृष्ठों में की है। इसके प्रत्युत्तर में मेरा दूसरा तर्क यह है कि यदि शौरसेनी के ग्रन्थों के आधार पर ही मागधी के प्राकृत आगमों की रचना हुई हो, तो उनमें किसी भी शौरसेनी प्राकृत के ग्रन्थ का उल्लेख क्यों नहीं है ? श्वेताम्बर आगमों में वे एक भी सन्दर्भ दिखा दें, जिनमें 'भगवती - आराधना', 'मूलाचार', 'षट्खण्डागम', 'तिलोयपण्णति', 'प्रवचनसार', 'समयसार', 'नियमसार' आदि का उल्लेख हुआ हो । टीकाओं में भी मलयगिरि (तेरहवीं शती) ने मात्र 'समयपाहुड' का उल्लेख किया है, इसके विपरीत 'मूलाचार', 'भगवती आराधना’,‘श्लोकवार्त्तिक आदि सभी दिगम्बर टीकाओं में (श्वेताम्बर अर्धमागधी) आगमों एवं नियुक्तियों के उल्लेख मिलते हैं। 'भगवती आराधना' की टीका में तो ‘आचाराङ्ग’, ‘उत्तराध्ययन', 'कल्पसूत्र' तथा 'निशीथसूत्र' से अनेक अवतरण दिये गए हैं। 'मूलाचार' में 'आवश्यकनिर्युक्ति', 'आतुरप्रत्याख्यान', 'महाप्रत्याख्यान', ‘चन्द्रवैध्यक’, ‘उत्तराध्ययन', 'दशवैकालिक' आदि की अनेक गाथाएँ अपने शौरसेनी शब्द-रूपों में यथावत् पायी जाती हैं। दिगम्बर-परम्परा में जो प्रतिक्रमणसूत्र उपलब्ध हैं, उसमें ‘ज्ञातासूत्र' के उन्हीं 19 अध्ययनों के नाम मिलते हैं, जो वर्त्तमान में श्वेताम्बर - परम्परा के 'ज्ञाताधर्मकथा' में उपलब्ध हैं। तार्किक दृष्टि से यह स्पष्ट है कि जो ग्रन्थ जिन-जिन ग्रन्थों का उल्लेख करता है, वह उनसे परवर्ती ही होता है, पूर्ववर्ती कदापि नहीं। शौरसेनी - आगम या आगमतुल्य ग्रन्थों में यदि अर्धमागधी आगमों के नाम मिलते हैं, तो फिर शौरसेनी और उस भाषा में रचित साहित्य अर्धमागधी से प्राचीन कैसे हो सकता है ? आदरणीय टाँटियाजी के माध्यम से यह बात भी उठाई गई कि मूलतः आगम शौरसेनी में रचित थे और कालान्तर में उनका अर्धमागधीकरण (महाराष्ट्रीकरण) किया गया। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि महावीर के संघ का उद्भव मगधदेश में हुआ और वहीं से वह दक्षिण एवं उत्तर-पश्चिमी भारत में फैला, अतः आवश्यकता हुई, अर्धमागधी आगमों के शौरसेनी और महाराष्ट्री रूपान्तर की, न कि शौरसेनी आगमों के अर्धमागधी
SR No.006188
Book TitlePrakrit Bhasha Ka Prachin Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages132
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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