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________________ महावीर के दर्शन में अहिंसा की अवधारणा : एक विश्लेषण अहिंसा का अर्थ विस्तार एवं उसके विविध आयाम विश्व के लगभग सभी धर्मों एवं धर्मग्रंथों में किसी न किसी रूप में अहिंसा की अवधारणा पाई जाती है। अहिंसा के सिद्धान्त की इस सार्वभौम स्वीकृति के बावजूद भी अहिंसा के अर्थ को लेकर उन सबमें एकरूपता नहीं है। हिंसा और अहिंसा के बीच खींची गई भेद रेखा सभी में अलग-अलग है। कहीं पशुवध को ही नहीं, नर-बलि को भी हिंसा की कोटि में नहीं माना गया है, तो कहीं वानस्पतिक हिंसा अर्थात् पेड़-पौधों को पीड़ा देना भी हिंसा माना जाता है। चाहे अहिंसा की अवधारणा उन सबमें समान रूप से उपस्थित हो, किन्तु अहिंसक-चेतना का विकास उन सबमें समान रूप से नहीं हुआ है। क्या मूसा के आदेश का वही अर्थ है, जो महावीर की 'सव्वे सत्ता न हंतव्वा' की शिक्षा का है? यद्यपि हमें यह ध्यान रखना होगा कि अहिंसा के अर्थविकास की यह यात्रा किसी कालक्रम में न होकर मानव-जाति की सामाजिक चेतना, मानवीय विवेक एवं संवेदनशीलता के विकास के परिणामस्वरूप हुई है। जो व्यक्ति या समाज जीवन के प्रति जितना अधिक संवेदनशील बना, उसने अहिंसा के प्रत्यय को उतना ही अधिक व्यापक अर्थ प्रदान किया। अहिंसा के अर्थ का यह विस्तार भी तीनों रूपों में हुआ है। एक ओर अहिंसा के अर्थ को व्यापकता दी गई, दूसरी ओर, अहिंसा का विचार अधिक गहन होता चला गया। एक ओर स्वजाति और स्वधर्मी मनुष्य की हत्या के निषेध से प्रारम्भ
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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