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है, मानना होगा और तभी यह सिद्ध होगा कि बुद्ध के निर्वाण के लगभग 15 वर्ष पश्चात् महावीर का निर्वाण हुआ।
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संदर्भ
(अ) णिव्वाणे वीर जिणे छव्वाससदेसु पंचवारिसेसु । पणमासेसु गदेसु संजादो सगणिओ अहवा ।। - लियोयपणत्ति, 4 / 1499
(ब) पंच य मासा पंच य वासा छच्चेव हॉति वाससया । परिणिव्वसुअस्सऽरिहतो सो उण्णणो सगो राया ।। - तित्थोगाली पइन्नइ 623.
पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तार, जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, श्री वीरशासन संघ, कलकत्ता, 1956, पृ. 26-44, 45-46
मुनि कल्याणविजय, वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना, प्रकाशक वि. शास्त्र समिति, जालौर (मारवाड़) पृ. 159.
तित्थोगाली पइन्नयं (गाथा 623), पइण्णयसुत्ताइं, सं. मुनि पुष्यविजय, प्रकाशक श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई 400036
तिलोयपण्णत्ति, 4/1499, सं. प्रो. हीरालाल जैन, जैन संस्कृतिरक्षक संघ शोलापुर,
लल्पसूत्र, 147, पृ. 145, अनुवादक माणिकमुनि, प्रकाशक- सोभागमल हरकावत, अजमेर | ठाणं (स्थानांग), अगुंसुत्ताणि भाग 1, आचार्य तुलसी, जैनविश्वभारती, लाडनू 7/141. भगवई 9/222-229 (अंगसुत्ताणि भाग- 2/ आचार्य तुलसी, जैन विश्व भारती लाडनू)
बहुरय पएस अव्वत्तसमुच्छादुगतिग अबद्धिया चेव।
सत्ते णिणहगा खुल तित्थमि उ वद्धमाणस्स ।। बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुत्ताओ। अव्वत्ताऽऽसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ।। गगाओ दोकिरिया छलुगा तेरासियाण उप्पत्ती । थेराय गोट्ठमाहिल पुट्ठमबद्धं परूविंति ।। सावत्थी उसभपुर सेयविया मिहिल उल्लूगातीरं । पुरिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नगराइ ।। चोद्दस सोलस वासा चौद्दसवीसुत्तरा य दोण्णि सया ।
अट्ठावीसा यदुवे पंचेव सया उ चोयाला ।।
पंच सया चलसीया छच्चेव सया णवोत्तरा होंति ।
णाणुपत्तीय दुवे उप्पण्णा णिव्वुए सेसा ।।
आवश्यक निर्युक्ति 778-783 (निर्युक्तिसंग्रह - सं. विजयजिनसेन सूरीश्वर हर्षपुष्पामृत, जैनग्रन्थमाला, लाखा बाखल, सौराष्ट्र, 1989 )