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________________ सकता है, अन्य किसी विकल्प से इसकी संगति बैठाना सम्भव नहीं है। मथुरा अभिलेखों में एक नाम आर्यवृद्धहस्ति का भी मिलता है। इनके दो अभिलेख मिलते हैं। एक अभिलेख शक सं.60 (हुविष्क वर्ष 60) और दूसरा शक सं. 79 का है। ईस्वी सन् की दृष्टि से ये दोनों अभिलेख ई.सन् 138 और ई.सन् 157 के हैं। यदि ये वृद्धहस्ति ही कल्पसूत्र स्थविरावली के आर्यवृद्ध और पट्टावलियों के वृद्धदेव हों, तो पट्टावलियों के अनुसार उन्होंने वीर निर्वाण 695 में कोरंटक में प्रतिष्ठा करवाई थी।" यदि हम वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानते हैं, तो यह काल 695-467=218 ई.आता है, अतः वीरनिर्वाण ई.पू.527 मानने पर इस अभिलेखीय साक्ष्य और पट्टावलीगत मान्यता का समीकरण ठीक बैठ जाता है। पट्टावली में वृद्ध का क्रम 25वाँ है। प्रत्येक आचार्य का औसत सत्ताकाल 25 वर्ष मानने पर इनका समय वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानने पर भी अभिलेख से वीरनिर्वाण 625 आयेगा और तब 625-467=158 ई.संगति बैठ जायेगी। अन्तिम साक्ष्य जिस पर महावीर की निर्वाण तिथि का निर्धारण किया जा सकता है, वह है- महाराज ध्रुवसेन के अभिलेख और उनका काल। परम्परागत मान्यता यह है कि वल्लभी की वाचना के पश्चात् सर्वप्रथम कल्पसूत्र की सभा के समक्ष वाचना आनन्दपुर (बड़नगर) में महाराज ध्रुवसेन के पुत्र मरण के दुःख को कम करने के लिए की गई। यह काल वीर निर्वाण सं.980 या 993 माना जाता है। ध्रुवसेन के अनेक अभिलेख उपलब्ध हैं। ध्रुवसेन प्रथम का काल ई.सं.525 से 550 तक माना जाता है। यदि यह घटना उनके राज्यारोहण के द्वितीय वर्ष ई.सन् 526 की हो, तो महावीर का निर्वाण 993526=469 ई.पू.सिद्ध होता है। इस प्रकार, इन पाँच अभिलेखीय साक्ष्यों में तीन तो ऐसे अवश्य हैं, जिनसे महावीर का निर्वाण ई.पू.467 सिद्ध होता है, जबकि दो ऐसे हैं, जिनसे वीरनिर्वाण ई.पू.527 भी सिद्ध हो सकता है। एक अभिलेख की इनसे कोई संगति नहीं है। ये असंगतियाँ इसलिए भी हैं कि पट्टावलियों में आचार्यों का जो काल दिया गया है, उसकी प्रामाणिकता संदिग्ध है और आज हमारे पास ऐसा कोई आधार नहीं है जिसके आधार पर इस असंगति को समाप्त किया जा सके। फिर भी, इस विवेचना में हम यह पाते हैं कि अधिकांश साहित्यिक एवं अभिलेखीय साक्ष्य महावीर के निर्वाण काल को ई.पू.467 मानने की ही पुष्टि करते हैं। ऐसी स्थिति में बुद्ध निर्वाण ई.पू.482, जिसे अधिकांश पाश्चात्य विद्वानों ने मान्य किया
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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