SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वज्रसेन का स्वर्गवास हुआ। मेरुतुंग की विचारश्रेणी में इसके बाद आर्य निर्वाण 621 से 690 तक युगप्रधान रहे। यदि मथुरा अभिलेख के हस्तहस्ति ही नागहस्ति हों, तो माघहस्ति के गुरु के रूप में उनका उल्लेख शक सं.52 के अभिलेख में मिलता है, अर्थात् वे ई.सन् 132 के पूर्व हुए हैं। यदि हम वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानते हैं, तो उनका युग प्रधान काल ई.सन् 154-223 आता है। अभिलेख उनके शिष्य को ई.सन् 132 में होने की सूचना देता है, यद्यपि यह मानकर सन्तोष किया जा सकता है कि युग प्रधान होने के 22 वर्ष पूर्व उन्होंने किसी को दीक्षित किया होगा। यद्यपि इनकी सर्वायु 100 वर्ष मानने पर तब उनकी आयु मात्र 11 वर्ष होगी और ऐसी स्थिति में उनके उपदेश से किसी का दीक्षित होना और उस दीक्षित शिष्य द्वारा मूर्ति प्रतिष्ठा होना असम्भव सा लगता है, किन्तु यदि हम परम्परागत मान्यता के आधार पर वीरनिर्वाण को शक संवत् 605 पूर्व या ई.पू.527 मानते हैं, तो पट्टावलीगत उल्लेखों और अभिलेखीय साक्ष्यों में संगति बैठ जाती है। इस आधार पर उनका युगप्रधान काल शक सं.16 से शक सं.85 के बीच आता है और ऐसी स्थिति में शक सं.54 में उनके किसी शिष्य के उपदेश से मूर्ति प्रतिष्ठा होना सम्भव है। यद्यपि 69 वर्ष तक उनका युग प्रधानकाल मानना सामान्य बुद्धि से युक्तिसंगत नहीं लगता है। अतः, नागहस्ति सम्बन्धी यह अभिलेखीय साक्ष्य पट्टावली की सूचना को सत्य मानने पर महावीर का निर्वाण ई.पू.527 मानने के पक्ष में जाता है। __पुनः, मथुरा के एक अभिलेखयुक्त अंकन में आर्यकृष्ण का नाम सहित अंकन पाया जाता है। यह अभिलेख शक संवत् 95 का है। यदि हम आर्यकृष्ण का समीकरण कल्पसूत्र स्थविरावली में शिवभूति के बाद उल्लिखित आर्यकृष्ण से करते हैं, तो पट्टावलियों एवं विशेषावश्यकभाष्य के आधार पर इनका सत्ता समय वीरनिर्वाण सं.609 के आसपास निश्चित होता है। क्योंकि इन्हीं आर्यकृष्ण और शिवभूति के वस्त्र सम्बन्धी विवाद के परिणामस्वरूप बोटिक निह्नव की उत्पत्ति हुई थी और इस विवाद का काल वीरनिर्वाण सं. 609 सुनिश्चित है। वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानने पर उस अभिलेख का काल 609-467=142 ई.आता है। यह अभिलेखयुक्त अंकन 95+78=173 ई. का है। चूँकि अंकन में आर्यकृष्ण को एक आराध्य के रूप में अंकित करवाया गया है, यह स्वाभाविक ही है कि उनकी ही शिष्य परम्परा के किसी आर्य अहं द्वारा ई.सन् 173 में यह अंकन उनके स्वर्गवास के 20-25 वर्ष बाद ही हुआ होगा। इस प्रकार, यह अभिलेखीय साक्ष्य वीरनिर्वाण संवत् ई.पू.467 मानने पर ही अन्य साहित्यिक उल्लेखों से संगति रख
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy