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स्थविरावली के आर्य कृष्ण और आर्य वृद्ध-ये दो नाम मिलते हैं। पट्टावलियों के अनुसार आर्य मंगु का युग-प्रधान आचार्यकाल वीरनिर्वाण संवत् 451 से 470 तक माना गया है।" वीर निर्वाण ई.पू.467 मानने पर इनका काल ई.पू.16 से ई.सन् 3 तक और वीर निर्वाण ई.पू.527 मानने पर इनका काल ई.पू.76 से ई.पू.57 आता है। जबकि अभिलेखीय आधार पर इनका काल शक सं. 52 (हुविष्क वर्ष 52) अर्थात् ई.सन् 130 आता है। अर्थात् इनके पट्टावली और अभिलेख के काल में वीरनिर्वाण ई.पू.527 मानने पर लगभग 200 वर्षों का अन्तर आता है और वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानने पर भी लगभग 127 वर्ष का अन्तर तो बना ही रहता है। अनेक पट्टावलियों में आर्य मंगु का उल्लेख भी नहीं है, अतः उनके काल के सम्बन्ध में पट्टावलीगत अवधारणा प्रामाणिक नहीं है। पुनः, आर्य मंगु का नाम मात्र जिस नन्दीसूत्र स्थविरावली में है और यह स्थविरावली भी गुरु-शिष्य परम्परा की सूचक नहीं है। अतः बीच में कुछ नाम छूटने की सम्भावना है जिसकी पुष्टि स्वयं मुनि कल्याणविजयजी ने भी की है। इस प्रकार, आर्य मंगु के अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर महावीर के निर्वाणकाल का निर्धारण सम्भव नहीं है, क्योंकि इस आधार पर ई.पू.527 की परम्परागत मान्यता ई.पू.467 की विद्वन्मान्य मान्यता-दोनों ही सत्य सिद्ध नहीं होती हैं। अभिलेख एवं पट्टावली का समीकरण करने पर इससे वीरनिर्वाण ई.पू.360 के लगभग फलित होता है। इस अनिश्चितता के कारण आर्य मंगु के काल को लेकर विविध भ्रान्तियों की उपस्थिति है। ____ जहाँ तक आर्य नन्दिल का प्रश्न है, हमें उनके नाम का उल्लेख भी नन्दिसूत्र में मिलता है। नन्दिसूत्र में उनका उल्लेख आर्य मंगु के पश्चात् और आर्य नागहस्ति के पूर्व मिलता है। मथुरा के अभिलेखों में नन्दिक (नन्दिल) का एक अभिलेख शक-सम्वत् 32 का है। दूसरे शक सं.93 के लेख में नाम स्पष्ट नहीं है, मात्र ‘न्दि' मिला है। आर्य नन्दिल का उल्लेख प्रबन्धकोश एवं कुछ प्राचीन पटावलियों में भी है, किन्तु कहीं पर भी उनके समय का उल्लेख नहीं होने से इस अभिलेखीय साक्ष्य के आधार पर महावीर के निर्वाण काल का निर्धारण सम्भव नहीं है।
अब हम नागहस्ति की ओर जाते हैं--सामान्यतया सभी पट्टावलियों में आर्य वज्र का स्वर्गवास वीरनिर्वाण सं.584 में माना गया है। आर्य वज्र के पश्चात् 13 वर्ष आर्य रक्षित, 20 वर्ष पुष्यमित्र और 3 वर्ष वज्रसेन युगप्रधान रहे अर्थात् वीरनिर्वाण सं.620 में