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ई.पू. 467 मानते हैं, तो आर्य सुहस्ति आचार्यकाल 467-245 ई.पू. 222 से प्रारम्भ होता है। इससे समकालीनता तो बन जाती है, यद्यपि आचार्य के आचार्यत्वकाल में सम्प्रति का राज्यकाल लगभग 1 वर्ष ही रहता है, किन्तु आर्य सुहस्ति का सम्पर्क सम्प्रति से उसके यौवराज्य काल में, जब वह अवन्ति का शासक था, तब हुआ था और सम्भव है कि तब आर्य सुहस्ति संघ के युग प्रधान आचार्य न होकर भी प्रभावशाली मुनि रहे हों। ज्ञातव्य है कि आर्य सुहस्ति स्थूलीभद्र से दीक्षित हुए थे। पट्टावलियों के अनुसार स्थूलीभद्र की दीक्षा वीरनिर्वाण सं. 146 में हुई थी और स्वर्गवास वीरनिर्वाण 215 में हुआ था। इससे यह फलित होता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्याभिषेक के 9 वर्ष पूर्व अन्तिम नन्द राजा (नव नन्द) के राज्यकाल में वे दीक्षित हो चुके थे। यदि पट्टावली के अनुसार आर्य सुहस्ति की सर्व आयु 100 वर्ष और दीक्षा आयु 30 वर्ष मानें, तो वे वीरनिर्वाण सं.221 अर्थात् ई.पू.246 (वीरनिर्वाण ई.पू. 467 मानने पर) में दीक्षित हुए हैं। इससे आर्य सुहस्ति की सम्प्रति से कोई समकालिकता तो सिद्ध हो जाती है, किन्तु उन्हें स्थूलीभद्र का हस्त-दीक्षित मानने में 6 वर्ष का अन्तर आता है, क्योंकि उनके दीक्षित होने के 6 वर्ष पूर्व ही वीरनिर्वाण सं. 215 में स्थूलीभद्र का स्वर्गवास हो चुका था । सम्भावना यह भी हो सकती है कि सुहस्ति 30 वर्ष की आयु के स्थान पर 23-24 वर्ष में ही दीक्षित हो गये हों, फिर भी यह सुनिश्चित है कि पट्टावलियों के उल्लेखों के आधार पर आर्य सुहस्ति और सम्प्रति की समकालीनता वीरनिर्वाण ई.पू. 467 पर ही सम्भव है। उसके पूर्व ई.पू.527 में अथवा उसके पश्चात् की किसी भी तिथि को महावीर का निर्वाण मानने पर यह समकालीनता सम्भव नहीं है।
इस प्रकार, भद्रबाहु और स्थूलीभद्र की महापद्मनन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य से तथा आर्य सुहस्ति की सम्प्रति से समकालीनता वीरनिर्वाण ई.पू.467 मानने पर सिद्ध की जा सकती है। अन्य सभी विकल्पों में इनकी समकालिकता सिद्ध नहीं होती है। अतः, मेरी दृष्टि में महावीर का निर्वाण ई.पू.467 मानना अधिक युक्तिसंगत होगा।
अब हम कुछ अभिलेखों के आधार पर भी महावीर के निर्वाण समय पर विचार
करेंगे
मथुरा के अभिलेखों " में उल्लेखित पाँच नामों में से नन्दिसूत्र स्थविरावली” के आर्य मंगु, आर्य नन्दिल और आर्य हस्ति (हस्त हस्ति ) - ये तीन नाम तथा कल्पसूत्र