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________________ 10. वीरजिणे सिद्धिगदे चउसदइगिसट्ठिवासपरिमाणे। कालम्मि अदिक्ते उप्पण्णे एत्थ सकराओ।।4611 अहवा वीरे सिद्धे सहस्सणवकम्मि सगसयब्भहिए। पणसीदिम्मि यतीदे पणमासे सकणिओ जादे। 9785. मास 5. चोद्दससहस्ससगसयतेणउदीवासकालविच्छेदे। वीरेसरसिद्धीदो उप्पण्णे सगणिओ अहवा।।1479311 णिव्वाणे वीरजिणे छव्वाससदेषु पंचवरिसेसुं। पणमासेसु गदेखें संजादो सगणिओ अहवा।।605 मा 511 - तिलोयपण्णति 4/1496-1499 भवणिदेसु पंचमासाहियपंचुत्तरछस्सदवासाणि हवंति। एसो वीरजिणिंदणिव्वाणगददिवसादो जाव सगकालस्स आदी होदि तावदियकालो। कुदो ? 605/5 एदम्हि काले सगणरिंदकालम्मि पक्खित्ते वड्टमाणजिणणिव्वुदकालागमणादो। वुत्तं च - पंच य मासा पंच य त्रासा छच्चेव होंति वाससया। सगकालेण य सहिया थावेयव्वो तदो रासी।। अण्णे के वि आइरिया चोदससहस्स-सत्तसद-तिणउदिवासेसु जिणणिव्वाणदिणादो अइक्कंतेसु सगणरिंदुप्पत्ति भणंति 147931 वृत्तं च - गुत्ति-पयत्थ-भयाइं चोद्दसरयणाइ समइकंताई। परिणिव्वुदे जिणिंदे तो रज्ज सगणरिंदस्स।। अण्णे के वि आइरिया एवं भणंति। तंजहा - सत्तसहस्स-णवसय-पंचाणउदिवरिसेसुपंचधमासाहिएसु बड्ढमाणजिणणिव्वुददिणादो अइक्कंतेसु सगंणरिंदरज्जुप्पत्ती जादो त्ति। एत्थ गाहा - सत्तसहस्सा णवसद पंचाणउदी सपंचमासा या अइकंता वासाणं जइया तइया सगुप्पत्ती।। एदेसु तिसु एक्केण होदव्वं। ण तिण्णमुवदेसाण सच्चत्तं, अण्णोण्णविरोहादो। तदो जाणिय वत्तव्यं। -धवला टीका समन्वित षट्खण्डागम खण्ड भाग 4,1, पुस्तक 9, पृ. 132-133. - 12. समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव सव्वदुक्खपहीणस्स नव वास सयाइं विइकंताई दसमस्स वाससयस्स अयं असीइमे संवच्छरे काले गच्छइ, वायणंतरे पुण अयं वायणं तेरे पुण अयं ते णउए संवच्छरे काले गच्छइ इह दीसइ। - कल्पसूत्र (मणिकमुनि, अजमेर) 147, पृ. 145 13. पालगरण्णो सट्ठी पणपण्णसयं वियाणं णंदाणं। मरुयाणं अट्ठसयं तीसा पुण पुसमित्ताणं।।
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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