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________________ सभागार रहा होगा। ऐसा सभागार महावीर के विशाल संघ के चातुर्मास का उपयुक्त स्थल हो सकता था, किन्तु यह नगर के मध्य हो, यह सम्भावना कम ही है। इस प्रकार, मज्झिमा का अर्थ न तो मध्यवर्ती पावा होगा और न पावा के मध्य में- ऐसा होगा। अब हम 'मज्झिमा' शब्द के तीसरे अर्थ मध्यदेशीय पावी की ओर जाते हैं। तीसरे अर्थ के अनुसार इसका तात्पर्य यह होगा कि वह पावा नगर मध्यदेश में स्थित था। ज्ञातव्य है कि पालि त्रिपिटक और बुद्धकालीन भूगोल में मध्यदेश की सीमाएँ इस प्रकार थींमध्यदेश के पूर्व में विदेह, पश्चिम में कौशल, उत्तर में शाक्य/मौरिय (नेपाल का तराई क्षेत्र) तथा दक्षिण में काशी देश स्थित थे। इसका अर्थ है कि मज्झिमापावा मध्यदेश में स्थित थी, जबकि वर्तमान में मान्य राजगृह की समीपवर्ती पावा मगधदेश में स्थित है। अतः, मज्झिमा विशेषण से यह बात सिद्ध होती है कि महावीर के निर्वाणस्थल के रूप में मान्य पावा उस काल के मध्यदेश अर्थात् मल्लों के गणतंत्र में स्थित थी। इस आधार पर कुशीनगर से लगभग 20 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित फाजिलनगर सठियाँव या उसमानपुर वीरभारी के समीपवर्ती क्षेत्र के पावा होने की सम्भावना अधिक समीचीन लगती है, क्योंकि उसकी पुष्टि बौद्ध साहित्यिक साक्ष्यों से होती है। ___मध्यदेश में स्थित इस ‘पावा' की पहचान करने में भी कठिनाई यह है कि इस सम्बन्ध में विद्वानों में अभी मतैक्य नहीं हो पाया है। खेतानजी आदि कुछ विद्वान वर्तमान पड़रौना के सिद्धवा को पावा मानते हैं, तो कारलाइल प्रभृति कुछ विद्वानों ने फाजिलनगर 'सठियाँव' को 'पावा' माना है। श्री ओमप्रकाशलाल श्रीवास्तव ने 'श्रमण' जनवरी-जून 2000 में प्रकाशित अपने लेख में एक नया मत प्रस्तुत करते हुए, उसमानपुर के निकटवर्ती वीरभारी नामक टीले को पावा बताया है, अतः चाहे राजगृही के समीपवर्ती पावा को महावीर निर्वाण स्थल नहीं भी माना जाये और मध्यदेश स्थित मल्लों की ‘पावा' को ही महावीर की निर्वाण भूमि माना जाये, तो भी उस स्थान का सम्यक् निर्णय करना अभी शेष है। __मध्यदेश स्थित मल्लों की राजधानी 'पावा' की पहचान का सबसे महत्त्वपूर्ण साहित्यिक साक्ष्य यह है कि वह भगवान् बुद्ध के परिनिर्वाण स्थल कुशीनगर से 3 गव्यूति की दूरी पर स्थित था, किन्तु कुशीनगर को केन्द्र मानकर यदि तीन गव्यूति व्यास से वृत्त खींचा जाय, तो उसमें चारों दिशाओं के अनेक स्थल आयेंगे, अतः इस आधार पर भी सम्यक् निर्णय पर कैसे पहुँचें? इस हेतु हमें बुद्ध के अन्तिम यात्रामार्ग के आधार पर निर्णय |||| २ . . .- - - - - - - |||
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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