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किन्तु, उस काल में ऐसी तीन पावा थीं, इसका कोई भी प्रमाण जैनागमों और त्रिपिटक में नहीं मिलता। यद्यपि इस कल्पना की एक फलश्रुति अवश्य है, वह यह कि राजगृह के समीपवर्ती पावा चाहे उस युग में रही भी हो, किन्तु वह मध्यवर्ती पावा (मज्झिमा पावा) नहीं हो सकती है, अतः उसे महावीर की निर्वाण भूमि नहीं माना जा सकता है। वह मध्यवर्ती पावा न होकर दक्षिण या अन्त्य पावा ही सिद्ध होगी, क्योंकि उसके दक्षिण या पूर्व दिशा में किसी अन्य पावा के कोई भी संकेत नहीं मिले हैं। इन तीन पावा नगरों की कल्पना को स्वीकार करने में सबसे बड़ी बाधा यह भी है कि पुरातात्त्विक और साहित्यिक साक्ष्यों से यह बात सिद्ध नहीं होती कि महावीर या बुद्ध के काल में पावा नामक नगर तीन थे। जो भी साहित्यिक उल्लेख उपलब्ध हैं, वे मल्लों की मध्यदेशीय पावा के ही हैं, अन्य किसी पावा का कोई उल्लेख नहीं है।
कुछ विद्वानों ने तीन 'पावा' की बात तो स्वीकार नहीं की, किन्तु मज्झिमा पावा का अर्थ यह लगाया है कि पावा नगर के मध्य में स्थित हस्तिपालराजा की रज्जुक सभा में महावीर का निर्वाण हुआ था, इसी कारण उसे मज्झिमा पावा कहा गया है। प्राकृत व्याकरण की दृष्टि से मज्झिमा पावा का विशेषण है, उसका अर्थ है मध्यमा अर्थात् बीच की पावा या मध्यदेशीय पावा- ऐसा होगा, किन्तु पावा के मध्य में - ऐसा नहीं, क्योंकि लेखक को यदि यह बात कहनी होती, तो वह 'पावाए मज्झे' - इन शब्दों का प्रयोग करता न कि 'मज्झिमा पावा' का। दूसरे, महावीर जब भी चातुर्मास करते थे, तो गाँव या नगर के मध्य में न करके गाँव या नगर के बाहर ही किसी उद्यान, चैत्य आदि पर ही करते थे, अतः उन्होंने यह चातुर्मास पावा नगर के मध्य में किया होगा, यह बात सिद्ध नहीं होती।
कसभा का अर्थ भी यह बताता है कि वह स्थान हस्तिपाल राजा के नाप-तौल विभाग का सभास्थल रहा होगा, किन्तु यह सभाभवन के नगर के मध्य में हो, यह सम्भावना कम ही है। ज्ञातव्य है कि जैन परम्परा में नाप के लिए 'रज्जु' शब्द का प्रयोग मिलता है। सामान्य रूप से रज्जुक वे राजकीय कर्मचारी थे, जो रस्सी लेकर भूमि या खेतों का माप करते थे। ये कर्मचारी वर्त्तमान काल के पटवारियों के समान ही थे। राज्य में प्रत्येक गांव का एक रज्जुक होता होगा और एक छोटे से राज्य में भी हजारों गाँव होते थे, अतः राज्य कर्मचारियों में रज्जुकों की संख्या सर्वाधिक होती थी । सम्भव है, उनकी सभा हेतु कोई विशाल भवन रहा हो।
महावीर ने यह स्थल चातुर्मास के लिए इस कारण से चुना होगा कि इसमें विशाल
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