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________________ लेना होगा। अपने जीवन की संध्या में बुद्ध किस मार्ग से कुशीनगर से आये थे? सम्भावनाएं तीन हो सकती हैं-राजगृह वैशाली मार्ग से, श्रावस्ती के मार्ग से या शाक्य प्रदेश अर्थात् कपिलवस्तु (नेपाल की तराई) से। यदि वे श्रावस्ती से आ रहे थे, तो 'पावा' की खोज कुशीनगर के पश्चिम में करनी होगी। यदि वे शाक्य राज्य से आ रहे थे तो पावा की खोज कुशीनगर के उत्तर में करना होगी, किन्तु यदि वे राजगृह या वैशाली से आ रहे थे, तो हमें 'पावा' की खोज कुशीनगर के दक्षिण-पूर्व में करनी होगी। पाली साहित्य से जो सूचनाएं हमें प्राप्त हैं, उस आधार पर उनकी यात्रा राजगृह-वैशाली की ओर से थी, अतः ‘पावा' की खोज कुशीनगर के दक्षिण-पूर्व में करना होगी। इस आधार पर पड़रौना के सिद्धवा को ‘पावा' मानने की संभावना निरस्त हो जाती है, क्योंकि पड़रौना कुशीनगर (वर्तमान कसाया) के ठीक उत्तर में है। यद्यपि भगवान् महावीर निर्वाण भूमि ‘पावा' नामक भगवतीप्रसाद खेतान की पुस्तक की भूमिका में उनके मत का समर्थन करते हुए मेरा झुकाव भी पड़रौना को पावा मानने के पक्ष में था, किन्तु निम्न तीन कारणों से अब मुझे अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन करना पड़ रहा है1. पड़रौना के ‘पावा' होने के पक्ष में आज तक कोई भी ठोस साहित्यिक और पुरातात्त्विक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं। आदरणीय भगवतीप्रसाद खेतान द्वारा दिये गये तर्कों और साक्ष्यों से यह तो सिद्ध होता है कि राजगृह के समीपवर्ती पावा वास्तविक पावा नहीं है, किन्तु पड़रौना का सिद्धवा स्थान ही पावा है, यह पूर्णतया सिद्ध नहीं होता। 2. दूसरे, पडरौना राजगृह-वैशाली-कुशीनारा के सीधे या सरल मार्ग पर स्थित नहीं है, राजगृह या वैशाली से पडरौना होकर कुशीनारा आना एक चक्करदार रास्ता है। भगवान् बुद्ध की इस यात्रा का लक्ष्य कुशीनारा था, अतः उत्तर में जाकर पुनः दक्षिण में आने वाले मार्ग का चयन उचित नहीं था। 3. जैन व्याख्या साहित्य के अनुसार भगवान् महावीर ने अपने कैवल्यस्थल से बारह योजन चलकर पावा में अपने धर्म तीर्थ की स्थापना की थी। मेरी दृष्टि में वर्तमान जमुई के समीपवर्ती लछवाड़ महावीर का जन्मस्थल न होकर कैवल्यज्ञान-स्थल है। वहाँ से सीधे मार्ग से पावा की दूरी लगभग 190 किलोमीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए। पडरौना को पावा मानने पर यह दूरी लगभग 250 कि.मी. से अधिक हो जाती है, अतः पडरौना को पावा मानने में अनेक कठिनाइयाँ हैं।
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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