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________________ आनंदऋषिजी अभिनंदन ग्रंथ, पृ.265 19. (अ) सप्तभिः प्रकारैर्वचनविन्यासः सप्तभंगीतिगीयते।-स्याद्वादमंजरी, कारिका 23 की टीका. (ब) प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुनि अविरोधन विधिप्रतिषेधविकल्पना सप्तभंगी। राजवार्तिक 1-6-5 20. देखें-जैन दर्शन- डॉ.मोहनलाल मेहता, पृ. 300-307 सव्वे सरा नियटृति, तक्का जत्थ न विजइ मई तत्थ न गहिया..... उवमा न विजइ अपयस्स पयं नत्थि। - आचारांग-1-5-17 22. पण्णवणिज्जा भावा अणंतभांगो दुअणभिलप्पानं। पण्णवणिज्जाणं पुण अणंतभागो सुदनिबद्धो।.-गोम्मटसार, जीवकाण्ड 334 23. सुत्तनिपात 51-21 24. सुत्तनिपात 51-3 25. सुत्तनिपात 46-8-9 26. सयं सयं पंससंता गरहन्ता परं वयं। जे उ तत्थ विउस्सयन्ति संसारेते विउस्सया। -सूत्रकृतांग 1-1-2-23 27. थेरगाथा-1 /106 28. उदान-6/4 29. सुत्तनिपात-40/16-17 30. सुत्तनिपात-51/2,3,10,11,16-20 31. वही-46/8-9 32. गीता-16-10 33. वही-17.19, 18/35 34. विवेकचूड़ामणि, 60 35. वही, 62 36. वही, 61 37. शुक्रनीति-3/211-213
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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