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________________ 12 महावीरकालीन विभिन्न आत्मवाद एवं महावीर के आत्मवाद का वैशिष्ट्य धर्म और नैतिकता आत्मा संबंधी दार्शनिक मान्यताओं पर अधिष्ठित रहते हैं। किसी भी धर्म एवं उसकी नैतिक विचारणा को उसके आत्मा संबंधी सिद्धान्त के अभाव में समुचित रूप से नहीं समझा जा सकता। महावीर के धर्म एवं नैतिक सिद्धान्तों के औचित्य-स्थापन के पूर्व उनके आत्मवाद का औचित्य स्थापन आवश्यक है, साथ ही, महावीर के आत्मवाद को समझने के लिए उनके समकालीन विभिन्न आत्मवादों का समालोचनात्मक अध्ययन भी आवश्यक है। यद्यपि भारतीय आत्मवादों के संबंध में वर्त्तमान युग में श्री ए.सी. मुखर्जी ने अपनी पुस्तक "The Nature of Self" एवं श्री एस. के. सक्सेना ने अपनी पुस्तक ' Nature of conciousness in Hindu Philosophy" में विचार व्यक्त किया है, लेकिन उन्होंने महावीर के समकालीन आत्मवादों पर समुचित रूप से कोई प्रकाश नहीं डाला है। श्री धर्मानन्द कौशाम्बीजी द्वारा अपनी पुस्तक 'भगवान बुद्ध' में यद्यपि इस प्रकार का लघु प्रयास अवश्य किया गया है, फिर भी इस संबंध में एक व्यवस्थित अध्ययन आवश्यक है। पाश्चात्य एवं कुछ आधुनिक भारतीय विचारकों की यह मान्यता है कि महावीर एवं बुद्ध के समकालीन विचारकों में आत्मवाद संबंधी कोई निश्चित दर्शन नहीं था। तत्कालीन सभी ब्राह्मण और श्रमण मतवाद केवल नैतिक-विचारणाओं एवं कर्मकाण्डीय व्यवस्थाओं को प्रस्तुत करते थे। सम्भवतः, इस धारणा का आधार तत्कालीन औपनिषदिक III PMC 153
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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