SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य अमृतचन्द्र सूरि के अनुसार तो जैन आचार विधि का सम्पूर्ण क्षेत्र अहिंसा से व्याप्त है, उसके बाहर उसमें कुछ है ही नहीं। सभी नैतिक नियम और मर्यादाएं इसके अन्तर्गत हैं। आचार के नियमों के दूसरे रूप, जैसे-असत्य भाषण नहीं करना, चोरी नहीं करना आदि तो जनसाधारण को सुलभ रूप से समझाने के लिए भिन्न-भिन्न नामों से कहे जाते हैं। वस्तुतः, वे सभी अहिंसा के ही विभिन्न पक्ष हैं। ° जैन आचार दर्शन में अहिंसा वह आधार वाक्य है, जिससे आचार के सभी नियम निर्गमित होते हैं। भगवती आराधना में कहा गया है कि अहिंसा सब आश्रमों का हृदय है, सब शास्त्रों का गर्भस्थल (उत्पत्ति स्थान) है।' 6 बौद्ध आचार-दर्शन में अहिंसा का स्थान बौद्धदर्शन के दस शीलों में अहिंसा का स्थान प्रथम है। चतुःशतक में कहा गया हैतथागत ने संक्षेप में केवल 'अहिंसा' - इन अक्षरों में धर्म का वर्णन किया है। धम्मपद में बुद्ध ने हिंसा को अनार्य कर्म कहा है। वे कहते हैं, जो प्राणियों की हिंसा करता है, वह आर्य नहीं होता। सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा का पालन करने वाला ही आर्य कहा जाता है। ' 9 बुद्ध हिंसा एवं युद्ध के नीतिशास्त्र के तीव्र विरोधी हैं। धम्मपद में कहा गया है कि विजय से वैर उत्पन्न होता है, पराजित दुःखी होता है, जो जय-पराजय को छोड़ चुका है, उसे ही सुख है, उसे ही शांति है। अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध इस बात को अधिक स्पष्ट कर देते हैं कि हिंसक व्यक्ति इसी जगत् में नारकीय जीवन का सृजन कर लेता है, जबकि अहिंसक व्यक्ति इसी जगत् में स्वर्गीय जीवन का सृजन कर लेता है। वे कहते हैं- 'भिक्षुओं! तीन धर्मों से युक्त प्राणी ऐसा होता है, जैसे लाकर स्वर्ग में डाल दिया गया हो। कौन से तीन ? - 'स्वयं प्राणी हिंसा से विरत रहता है, दूसरे को प्राणी हिंसा की ओर नहीं घसीटता और प्राणी हिंसा का समर्थन नहीं करता है।" महायान सम्प्रदाय में करुणा और मैत्री की भावना का जो चरम उत्कर्ष देखा जाता है, उसकी पृष्ठभूमि में यही अहिंसा का सिद्धान्त रहा हुआ है। हिन्दू - दर्शन और गीता में अहिंसा का स्थान गीता में अहिंसा का महत्व स्वीकृत करते हुए उसे भगवान् का ही भाव कहा गया है,
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy