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________________ देश, काल, परिस्थिति आदि अनेक बातों पर निर्भर करेगा। यहां हमें जीवन की मूल्यवत्ता को भी आंकना होगा। जीवन की यह मूल्यवत्ता दो बातों पर निर्भर करती है-1. प्राणी का ऐन्द्रिक एवं आध्यात्मिक विकास और 2. उसकी सामाजिक उपयोगिता। सामान्यतः, मनुष्य का जीवन अधिक मूल्यवान् है और मनुष्यों में भी एक सन्त का। किसी परिस्थिति में किसी मनुष्य की अपेक्षा किसी पशु का जीवन भी अधिक मूल्यवान हो सकता है। संभवतः, हिंसा-अहिंसा के विवेक में जीवन की मूल्यवत्ता का यह विचार हमारी दृष्टि में उपेक्षित ही रहा। यही कारण था कि हम चींटियों के प्रति संवेदनशील बन सके, किन्तु मनुष्य के प्रति निर्मम ही बने रहे। आज हमें अपनी संवेदनशीलता को मोड़ना है और मानवता के प्रति अहिंसा को सकारात्मक बनाना है। जैन-दर्शन में अहिंसा का स्थान अहिंसा जैन-दर्शन का प्राण है। जैन-दर्शन में अहिंसा वह धूरी है, जिस पर समग्र जैन आचार विधि घूमती है। जैनागमों में अहिंसा भगवती है। उसकी विशिष्टता का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं-'भयभीतों को जैसे शरण, पक्षियों को जैसे गगन, तृषितों को जैसे जल, भूखों को जैसे भोजन, समुद्र के मध्य जैसे जहाज, रोगियों को जैसे औषधि और वन में जैसे सार्थवाह का साथ आधारभूत है, वैसे ही अहिंसा प्राणियों के लिए आधारभूत है। अहिंसा चर एवं अचर सभी प्राणियों का कल्याण करने वाली है। वही मात्र एक ऐसा शाश्वत धर्म है, जिसका जैन तीर्थंकर उपदेश करते हैं। आचारांगसूत्र में कहा गया है-भूत, भविष्य और वर्तमान के सभी अहँत् यही उपदेश करते हैं कि सभी प्राणियों, सभी भूतों, सभी जीवों और सभी सत्वों को किसी प्रकार का परिताप, उद्वेग या दुःख नहीं देना चाहिए और न किसी का हनन करना चाहिए। यही शुद्ध, नित्य और शाश्वत धर्म है, जिसका समस्त लोक के दुःख जानकर अर्हतों के द्वारा प्रतिपादन किया गया है।' सूत्रकृतांग के अनुसार, ज्ञानी होने का सार यह है कि हिंसा न करें, अहिंसा ही समग्र धर्म का सार है, इसे सदैव स्मरण रखना चाहिए। दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि सभी प्राणियों के प्रति संयम में अहिंसा के सर्वश्रेष्ठ होने के कारण महावीर ने इसको 'प्रथम स्थान' पर कहा है। भक्तपरिज्ञा नामक ग्रंथ में कहा गया है कि अहिंसा के समान दूसरा धर्म नहीं है।'
SR No.006187
Book TitleBhagwan Mahavir Ka Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2016
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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