________________
उसे देवी सम्पदा एवं सात्विक तप बताया है।" महाभारत में तो जैन विचारणा के समान ही अहिंसा में सभी धर्मों को अन्तर्भूत मान लिया है।" मात्र यही नहीं, उसमें भी धर्म के उपदेश का उद्देश्य प्राणियों को हिंसा से विरत करना माना गया है। 'अहिंसा ही धर्म का साकर है'- इसे स्पष्ट करते हुए महाभारत के लेखक का कथन है- 'प्राणियों की हिंसा न हो, इसलिए धर्म का उपदेश दिया गया है, अतः जो अहिंसा से युक्त है, वही धर्म है।'
14
लेकिन, यह प्रश्न हो सकता है कि गीता में तो बार-बार अर्जुन को युद्ध करने का निर्देश दिया गया है और उसका युद्ध से विमुख होना निन्दनीय एवं कायरतापूर्ण माना गया है, फिर गीता को अहिंसा की विचारणा का समर्थक कैसे माना जाए? इस संबंध में मैं अपनी ओर से कुछ कहूँ, इसके पहले हमें गीता के व्याख्याकारों की दृष्टि से ही इसका समाधान पा लेने का प्रयास करना चाहिए। गीता के आद्य टीकाकार आचार्य शंकर 'युद्धस्व' (युद्धकर) शब्द की टीका में लिखते हैं कि यहां युद्ध की कर्त्तव्यता का विधान नहीं है।" मात्र यही नहीं, आचार्य गीता के 'आत्मोपम्येन सर्वत्र' के आधार पर गीता में अहिंसा के सिद्धान्त की पुष्टि करते हैं।' जैसे मुझे सुख प्रिय है, वैसे ही सभी प्राणियों को सुख अनुकूल है और जैसे दुःख मुझे अप्रिय एवं प्रतिकूल है, वैसे सब प्राणियों को भी दुःख अप्रिय व प्रतिकूल है। इस प्रकार, जो सब प्राणियों में अपने समान ही सुख और दुःख को तुल्यभाव से अनुकूल और प्रतिकूल देखता है, किसी के भी प्रतिकूल आचरण नहीं करता, वह अहिंसक है। ऐसा अहिंसक पुरुष पूर्णज्ञान में स्थित है, वह सब योगियों में परम उत्कृष्ट माना जाता है। "
16
17,
महात्मा गांधी भी गीता को अहिंसा का प्रतिपादक मानते हैं। उनका कथन है- 'गीता की मुख्य शिक्षा हिंसा नहीं, अहिंसा है। हिंसा बिना क्रोध, आसक्ति एवं घृणा के नहीं होती और गीता हमें सत्व, रजस् और तमस् गुणों के रूप में घृणा, क्रोध आदि की अवस्थाओं से ऊपर उठने को कहती है, फिर हिंसा कैसे हो सकती है।"" डॉ. राधाकृष्णन् भी गीता को अहिंसा की प्रतिपादक मानते हैं, वे लिखते हैं- 'कृष्ण अर्जुन को युद्ध करने का परामर्श देते हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि वे युद्ध की वैधता का समर्थन कर रहे हैं। युद्ध तो एक ऐसा अवसर आ पड़ा है, जिसका उपयोग गुरु उस भावना की ओर संकेत करने के लिए करता है, जिस भावना के साथ सब कार्य, जिनमें युद्ध भी सम्मिलित है, किये जाने चाहिए। यहाँ हिंसा या अहिंसा का प्रश्न नहीं है, अपितु अपने उन मित्रों के विरुद्ध हिंसा के
||||