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________________ जगजयवंत जीरावला वि. सं. 1303 में चित्रवालगच्छीय जैनाचार्य श्री आमदेवसूरिजी सेठ आम्रपाल सिंघवी के संघ के साथ जीरावला तीर्थ पधारे। _ वि. सं. 1318 में खीमासा संचेती ने जैनाचार्य श्री विजयहर्षसूरिजी की निश्रा में एक संघ यात्रा का आयोजन किया गया। _ वि. सं. 1340 में मालव मंत्रीश्वर पेथड़शाह के पुत्र झांझण शाह ने सुदी 5 को एक तीर्थ यात्रा का संघ निकाला था। यह संघ जीरावला आया था। यहाँ सिंघवी ने एक लाख रूपये मूल्य का मोती एवं सोने के तारों से भरा चंदरवा बांधा था। इसका वर्णन पंडित रत्नमंडनगणी ने अपने 'सुकृतसागर' में किया है। वि. सं. 1468 में संघपति तापासा ने खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपतिसूरिजी महाराज की निश्रा में एक तीर्थ यात्रा का आयोजन किया। मांडवगढ़ वासी झांझण शाह के पुत्र सिंघवी चाड़ ने जीरावला एवं अर्बुद गिरि के संघ निकाले थे। उनके भाई आल्हा ने जीरावला में एक महामण्डप तैयार करवाया था 'जीरापल्ली महातीर्थे मण्डपंतु चकार सः। उत्तोरणं मा स्तम्भं वितानांशुक भूषितम्।' -काव्य मनोहर सर्ग -7 खंभात निवासी साल्हाक श्रावक के पुत्र राम और पर्वत ने वि. सं. 1468 में जीरापल्ली पार्श्वनाथ तीर्थ में यात्रा कर बहुत धन खर्च किया था। वि. सं. 1475 में तपागच्छीय जैनाचार्य श्री हेमन्तसूरिजी महाराज के साथ संघपति मनोरथ ने एक विशाल तीर्थ यात्रा का आयोजन किया। वि.सं. 1483 में वैशाख सुदी 13 गुरुवार के दिन अंचलगच्छ के आचार्य मेरुतुङ्गसूरि के पट्टधर जयकीर्तिसूरि के उपदेश से पाटन निवासी ओसवाल जातीय मीठडिया गोत्रीय लोगों ने इस तीर्थ में पांच देहरियों का निर्माण करवाया था। (पूर्णचन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह खंड -1 लेख 973) वि. सं. 1483 में ही भाद्रपद वदि 7 गुरुवार के दिन तपागच्छीय आचार्य भुवनसुन्दरसूरि के आचार्यत्व में संघ निकालने वाले कल्वरगा नगर निवासी ओसवाल कोठारी गृहस्थों ने इस तीर्थ में तीन देहरियों का निर्माण करवाया था। (पूर्णचन्द्र नाहर, जैन लेख संग्रह खंड -1 लेख 974-976) 32
SR No.006176
Book TitleJiravala Parshwanath Tirth Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherMission Jainatva Jagaran
Publication Year2016
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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