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________________ 62 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन इसी से साम्य रखता हुआ नैषध का श्लोक प्रस्तुत है"उरोभुवा कुम्भयुगेन जृम्भितं नवोपहारेण वयस्कृतेन किम् । त्रपासरिदुर्गमपि प्रतीर्य सा नलस्य तन्वी हृदयं विवेश यत् ॥ 158 अर्थात् दमयन्ती नल के हृदय में कैसे प्रवेश कर सकती थी? क्योंकि लज्जा रूपी विषम नदी पड़ी हुई थी, उसे पार कर जाना दुर्गम था। परन्तु तारुण्यावस्था के नवीन उपहार रूप में वक्षस्थल पर विशाल दो कुम्भ प्रदान कर दिया । जिसके सहारे वह सुन्दरी दमयन्ती दुर्गम लज्जा रूपी नदी को पार कर नल के हृदय में पहुँच गयी । इसी प्रकार अधोलिखित श्लोक अमरूक शतक से काफी साम्य रखता है - " लीलातामर साह तोऽन्यवनितादष्टाधर त्वाऽजनः सम्मिश्राव्जर जस्तयेव सहसा सम्मीलितालोचन: वध्वाः पूतिकृतितत्परं मुकुलितं वक्त्रं पुनश्चुम्वतो निर्यातिस्म तदेव तस्य नितरां हर्षाश्रुभिः श्रीमतः ॥ 1159 1 यहाँ नायक-नायिका के क्रीडा प्रसङ्ग में कहा गया है कि किसी अन्य की स्त्री के अधर दंशन करने के कारण नायिका ने लीला कमल से नायक के मुख मण्डल पर प्रहार किया । कुशल नायक ने नेत्र में कमलरज पड़ जाने के बहाने ( यथार्थतः पराग नेत्र में पड़े नहीं थे) अपने नेत्रों को सहसा बन्द कर लिया । मुग्धा नायिका अपने मुख को मुकुलित कर फुंक के द्वारा पराग को निकालने में प्रवृत्त हो जाती है । अवसर पाकर धूर्त कुशल उस नायक ने उसके मुख का चुम्बन ले लिया । इसी का पूर्ण प्रतिबिम्ब अमरूक शतक में दर्शनीय है । यथा 44 'लीलातामरसाहतोऽन्यवनितानिः शङ्क दष्टाधर : कश्चित् शरदृषितेक्षण इव व्यामील्य नेत्रे स्थितः । मुग्धा कुङमलिताननेन ददती वायुं स्थिता तत्र सा भ्रान्त्या धूर्ततयाथ वा नतिमृते तेनानिशं चुम्बिता ॥ " 1160 अमरूक शतक का श्लोकार्थ यह है कि अन्य स्त्री के अधर को किसी नायक ने निर्भय होकर दंशित कर लिया । अतएव नायिका लीला कमल से क्रोधवश से पीट देती है । धूर्त नायक कमल केशर से दूषित नेत्र हो चुके हैं, ऐसी कपट मुद्रा में नेत्रों को बन्द कर लिया । मुग्धा नायिका अपने मुख को कुड्मलित कर आँखों में फुंकना प्रारम्भ कर दिया। परिणाम यह हुआ कि बिना झुके ही उसने प्रियतम का चिरकाल तक चुम्बन ले लिया । क्रुद्ध नायिका को शान्त करने के लिये नम्र होना आवश्यक था परन्तु धूर्त नायक ने नेत्र कमल केशर युक्त हो गये हैं ब्याज बनाकर बिना क्रोध शान्त किये ही चुम्बन में सफल हो गया। दोनों पद्यों में पूर्णतः साम्य है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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