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________________ तृतीय अध्याय / 63 जयोदय महाकाव्य में कालिदास के काव्यों की भी छाया देखने को मिलती है । प्रकृत महाकाव्य का प्रकृत पद्य रघुवंश महाकाव्य से साम्य रखता है "पयोधरीभूतचतुः समुद्रां समुल्लस वत्सलतोरुमुद्राम । प्रदक्षिणीकृत्य स गामनुद्राग् जगाम चैकान्तमहीमशूद्राम् ॥ "1 1161 यहाँ कहा गया है कि वह राजा जयकुमार ने शूद्ररहित अर्थात् पवित्र चतुः समुद्र स्तन वाली नाना प्रकार के प्रिय लताओं से परिपूर्ण प्रशस्त चिह्न वाली गो (भूमि) की परिक्रमा कर प्रस्थान किया । यहाँ रघुवंश का श्लोक द्रष्टव्य है 'निवर्त्यराजा दयितां दयालुस्तां सौरभेयीं सुरभिर्यशोभिः । पयोधरीभूतचतुः समुद्रां जुगोप गोरुपधरा मिवोर्वीम् ॥" 1162 44 प्रकृत पद्य में महाकवि ने कहा है कि सुन्दर कीर्तियुक्त दयालु राजा दिलीप अपनी प्रिय पत्नी को लौटाकर चारों समुद्रों को चार स्तनों के समान धारण किये हुए गौ की पृथ्वी की भाँति रक्षा करने लगे । पूर्ववर्ती कवियों के प्रभाव का यहाँ मैंने दिङ्मान निदर्शन प्रस्तुत किया है । यथार्थ तो यह है कि सम्पूर्ण जयोदय में कालिदास, श्रीहर्ष ही नहीं अन्य अनेक कवियों के पूर्ण प्रभाव हैं । प्रायः सभी वर्णन कहीं न कहीं से प्रभावित अवश्य हैं। मैंने विस्तार में उनका प्रदर्शन उचित नहीं समझा । *** फुट नोट 1. अथर्व वेद, काण्ड 20, सूक्ति 127 2. पदबन्धोज्ज्वलो हारो कृतवर्णक्रमस्थितिः । भट्टारहरिचन्द्रस्य गद्यबन्धों नृपायते ॥ - हर्षचरित 3. दृश्य श्रव्यत्वभेदेन पुनः काव्यं द्विधा मतम् । दृश्यं तत्राभिनेयं तद्रूपारोपात्तु रूपकम् ॥ भवेदभिनयोऽवस्थानुकारः स चतुर्विधः । आङ्गि को वाचिकश्चैवमाहार्यः सात्त्विकस्तथा ॥ नाटकमथ प्रकरणं भाणव्यायोगसमवकारडिमाः । ईहामृगाङ्कवीथ्यः प्रहसनमिति रूपकाणि दश ॥ नाटिका त्रोटकं गोष्ठी सदृकं नाटयरासकम् । प्रस्थानोल्लाप्यकाव्यानि प्रेङ्खणं रासकं तथा संलापकं श्रीगदितं शिल्पकं च विलासिका । दुर्मल्लिका प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च ॥ अष्टादश प्राहुरूपकाणि मनीषिणः । सा.द. 6/1, 2, 3, 4, 5, 6 पू. 4. द्वाभ्यां तु युग्मकं सांदानतिकं त्रिभिरिष्यते ॥ कलापकं चतुर्भिश्च पंचभि कुलकं मतम् । सा.द. 6/314 उत्त, 315 पू.
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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