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60 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
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महर्षि ने इस विषय हेतु दरवाजा खोल दिया है । इसलिये उसमें से विषय रत्न ग्रहण करने में मेरी भी मति समर्थ हो जायेगी । जिस प्रकार छेदे गये मणि में सूत्र पहुँच जाता है वैसे ही मैं भी इस विशाल वंश के वर्णन में मार्ग पा सकूँगा । ऐसे ही अन्यान्य कवियों ने भी पूर्ववर्ती कवियों को अपनाया है। आचार्य वामन ने दस शब्दगत और दस दस अर्थगत बीस गुणों को स्वीकार किया है, जिनमें समाधि भी एक गुण है । समाधि का लक्षण है कि पदार्थ पर (वर्ण विषय पर) दृष्टिपात करना" । वह दो प्रकार है: (1) अयोनि और ( 2 ) अन्यच्छायायोनि° ।
1. अयोनिः कवि सम्प्रदाय में किसी ने वैसा वर्णन न किया हो, ऐसे वर्णन को अयोनि समाधि कहते हैं ।
2. अन्यच्छायायोनिः प्राचीन कवि परम्परा के द्वारा व्यवहृत पदार्थ का कुछ प्रकारान्तर से प्रतिबिम्ब रूप में वर्णन करने को अन्यच्छायायोनि समाधि कहते हैं ।
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जयोदय महाकाव्य के निर्माता वाणीभूषण ब्रह्मचारी भूरामल शास्त्री जी इस अन्यच्छायायोनि से शून्य नहीं है । अनेक स्थलों में पूर्ववर्ती कवियों के वर्ण्य विषय को बड़े आदर के साथ अपनी कविताओं में स्थान दिया है । काव्य के प्रारम्भिक श्लोक ही नैषधीयचरितमहाकाव्य से मिलते-जुलते हैं
" तनोति पुते जगती विलासात्स्मृता कथा याऽथ कथं तथा सा । स्वसेविनीमेव गिरं ममाऽऽरात् पुनातु नाऽतुच्छरसाधिकारात् ॥ 51
प्रकृत श्लोक का अर्थ है कि राजा जयकुमार की कथा पुण्यशालिनी है । स्मरण करने मात्र से जगत् को पवित्र कर देती है । विनोद के साथ भी यदि स्मरण किया जाय तो यह लोक-परलोक दोनों को पवित्र कर देती है ।
ठीक इसी प्रकार का नैषधकार का भी श्लोक है
"पवित्रमत्रातनुते जगद्युगे स्मृता रसक्षालनयेव यत्कथा । कथं न सा मद्गिरमाविलामपि स्वसेविनीमेव पवित्रयिष्यति ॥
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अर्थात् जिस नल की कथा कलियुग में स्मरण करने मात्र से संसार को पवित्र करती है । वह कथा मलिन भी अर्थात् दोष से युक्त भी मेरी वाणी को क्यों पवित्र नहीं करेगी ? दोनों श्लोकों में समानता वर्णन करने की शैली में स्वल्प मात्र ही अन्तर है ।
ऐसे ही नैषध के अनेकों श्लोक इस महाकाव्य की समानता में अनुकूल हैं । जयोदय का निम्नलिखित श्लोक दर्शनीय है
" अधीतिबोधाचरणप्रचारैश्चतुर्दशत्वं गमितात्युदारै: । सार्धं सुविद्याऽथ कलाः समस्ता द्वासप्ततिस्तस्य बभुः प्रशस्ता ॥ '
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जिसका अर्थ है कि महाराज जयकुमार सुन्दर विद्याओं के अध्ययन, बोध (ज्ञान) आचरण (अपने जीवन - क्षेत्र में उतरना ) और प्रचार स्वरूप निर्दोष एवं विशाल साधनों से चार प्रकार