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________________ 58/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन नदी वर्णन में ही एक और श्लोक अवलोकनीय है - "सुरापगायाः सलिलैः पवित्रैर्मातङ्गतामात्मगतामपास्तुम् । किलाम्बुजामोदसुवासितैस्तैः स्नाति स्म भूयो निवहो दिवपानाम् ॥'AD यहाँ कहा गया है कि हाथियों का समूह भी अपनी मातंगता (चाण्डालपना) को दृः करने के लिये ही मानो गङ्गा के पवित्र जल में स्नान किया । जयोदय महाकाव्य में पर्वतों का भी यथावसर वर्णन मिलता है। महाकवि ने विजया: पर्वत तथा कैलास पर्वत का विशेष वर्णन किया है ।" महाकाव्य में यात्रा का वर्णन होना चाहिए । इस महाकाव्य में भी जयकुमार का नगर की ओर प्रस्थान का वर्णन किया गया है । प्रस्थान काल में झूल से सुसज्जित हस्ति समूह जिन आदि से सुसज्जित घोड़े, अश्व सन्द रथ समन्वित शूरों से युक्त जयकुमार का प्रसन्नता पूर्वक बताया गया है । यथा - "शासनं समुपगम्य भूपतेः पत्तनं प्रति पुनर्विनिर्गतेः । इत्थमाह समनीकिनीश्वरो गत्वरत्वसमयातिसत्वरः ॥142 "सज्जिताःसपदि हस्तिसञ्चयाः स्युश्च कश्यकु थसंयुता हयाः । युग्यसंयुतयुगा अथोरथा गन्तुमाग्रह धराश्च सत्पथा ॥५ महाकाव्य में संग्राम का वर्णन होता है। जयोदय महाकाव्य में जय और अर्क का युद्ध दिखाया गया है। युद्ध वर्णन प्रसङ्ग में यह कहा गया है कि जब प्राणों की रक्षा करने वाले धीर-वीर जयकुमार ने धनुष उठाया तब नाना दिशाओं से आये उसके शत्रुवर्ग ने तृणता स्वीकार कर ली । अर्थात् जयकुमार के सामने शत्रु टिक नहीं सके। जैसे हवा से तृण उड़ जाता है, वैसे ही वे तितर-बितर हो गये। इसकी रम्य योजना अवधेय है "यदाशुगस्थानमितः स धीरः प्राणप्रणेता जयदेव वीरः। अरातिवर्गस्तृणतां बभार तदाऽथ काष्ठाधिगतप्रकारः ॥144 जयोदय में विवाह का भी वर्णन प्राप्त होता है । सुलोचना ने स्वयंवर विधि से जयकुमार का वरण कर लिया है। सुलोचना के पिता काशिराज अकम्पन कन्यादान के लिये तत्पर होते हैं तथा पुरोहितों के द्वारा हवन कार्य प्रारम्भ हो गया। उस समय सारा भू-मण्डल कुसुमांजलि से परिपूर्ण हो गया तथा वर-वधू की ललाट रेखा उदार ज्वारों से परिपूर्ण हो गयी। सारी जनता रोमांचित हो उठी "कुसुमाञ्जलिभिर्धरा यवारैरुभयोर्मस्तक चूलिकाभ्युदारैः । जनता च मुदञ्चनैस्ततालमिति सम्यक् स करोपलब्धिकालः ॥'45 - इस महाकाव्य में पुत्र उत्पत्ति का भी वर्णन हुआ है । यथा" समभूत्समभूतरक्षणः स्वसमुत्सर्गविसर्गलक्षणः । शिवमानवमानवक्षणः नृपतेरुत्सवदुत्सवक्षणः ॥46
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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