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52/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन ____ महाकाव्य का कथानक ऐतिहासिक होता है अथवा लोक प्रसिद्ध किसी सत्पुरुष पर आश्रित होता है । उसका फल (धर्मार्थ, काम, मोक्ष) पुरुषार्थ चतुष्टय की प्रप्ति होती है या किसी एक की प्राप्ति भी दिखायी जाती है ।
___ महाकाव्य के प्रारम्भ में नमस्कारादि मङ्गलात्मक स्वरूप रखे जाते हैं अथवा वस्तु निर्देशात्मक माङ्गलिक नाम के द्वारा काव्यारम्भ होता है । कहीं-कहीं खलनिन्दा या सज्जन प्रशंसा आदि भी देखी जाती है । ___ सर्गों का निर्माण एक प्रकार के छन्द से किया जाता है। परन्तु सर्ग समाप्ति में अन्य छन्दों का निवेश अपेक्षित होता है। सर्गों की संख्या न तो अति अधिक न अति न्यून होनी चाहिए। इसलिये आठ से न्यून कथमपि नहीं होनी चाहिए ।
. छन्दों या वृत्तों के विषय में यह भी ज्ञातव्य है कि एक सर्ग में एक ही वृत्त का प्रयोग तो होता है, पर किसी-किसी सर्ग में विविध वृत्तों का भी प्रयोग किया जाता है। सर्गान्त में भावी कथा की सूचना भी दी जाती है | .. महाकाव्य में सन्ध्या, सूर्योदय, चन्द्रोदय, रात्रि, प्रदोष, अन्धकार, दिन, प्रात:काल, मध्याह्न काल, आखेट, पर्वत, ऋतु, वन, समुद्र, संभोग, विप्रलम्भ, मुनि, यज्ञ, रण, प्रयाण, विवाह, उपाय चतुष्टय, मंत्रणा, पुत्रोत्पत्ति, राजा, अमात्य, सेनापति आदि का साङ्गोपाङ्ग विवरण रहता
महाकाव्य का नामकरण कहीं-कहीं कवि के नाम पर किया जाता है। यथा- 'माघ काव्यम्' आदि । वृत्त प्रधान द्वारा भी काव्यों का नामकरण होता है- यथा 'कुमार सम्भवम्' आदि । नायक के नाम पर भी नामकरण होता है, जैसे - 'रघुवंश महाकाव्यम्'। सर्गों के नाम वक्तव्य विषय. की दृष्टि से भी किये जाते हैं, जैसे 'सन्ध्या वर्णनो नाम दशमः सर्गः' आदि। जिसमें इतिवृत्त का पूर्ण समावेश रहता है, उसे महाकाव्य कहते हैं। एक देश के वर्णन को खण्डकाव्य कहते हैं । ____ अब इन लक्षणों को ध्यान में रखते हुए हम जयोदय महाकाव्य के महाकाव्यत्व पर विचार करें।
वाणीभूषण ब्रह्मचारी भूरामल शास्त्री प्रणीत जयोदय भी एक महाकाव्य है, जिसकी रचना अट्ठाइस सर्ग में महाकवि ने की है इस प्रकार सर्गबद्धता यहाँ विद्यमान है। प्रकृत महाकाव्य के नायक सोमकुलोत्पन्न जयकुमार हैं। महाराज जयकुमार की कथा महाकवि ने महापुराण से ग्रहण की है । श्री शास्त्री जी स्वयं अपने ग्रन्थ में इस कथा को 'महापुराण' से लेने की घोषणा करते हैं । 'जयोदय महाकाव्य' का नायक जयकुमार धीरोदात्त गुण सम्पन्न है। सुलोचना के स्वयंवर से लेकर अर्ककीर्ति के साथ हुए युद्ध, अर्ककीर्ति के पराजय, दोनों के मिलने पर अर्ककीर्ति के प्रति जयकुमार की उक्ति आदि वृत्तान्त उनके नायकत्व के पोषक