SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 50 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन जैन कवि ऐतिहासिक महाकाव्यों की रचना में नितान्त दक्ष हैं, परन्तु इनका साहित्यिक तथा ऐतिहासिक मूल्य परिवर्तनशील है। जैन आचार्य हेमचन्द्र (1089 - 1173ई.) का 'कुमारपाल चरित', विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में हुए सोमेश्वर का 'सुरथोत्सव' और 'कीर्ति-कौमुदी', अरिसिंह कृत 'सुकृत- संकीर्तन', बालसूरि का 'वसन्त - विलास' इसी विषय पर है । नयचन्द्रसूरि रचित 'हम्मीर महाकाव्य', काश्मीरी कवि जयानक का 'पृथ्वीराज - विजय' और वाक्पतिराज का ‘गउ बही' प्राकृत में निबद्ध ऐतिहासिक काव्यों में अपनी शैली गत विशिष्टता के कारण नितांत प्रख्यात है । I इनके अतिरिक्त महाकाव्यों की ही परम्परा में शास्त्र काव्य तथा देव काव्य का उल्लेख भी समीचीन है । ऐसे काव्यों का प्रथम निदर्शनभट्टिकाव्य है। काश्मीर कवि भट्ट भीम रचित 'रावणार्जुनीय', हलायुध का 'कवि रहस्य' केरल के कवि वासुदेव का 'वासुदेव विजय' (अपूर्ण) एवं नारायन कवि का ' धातुकाव्य शास्त्र' काव्य की परम्परा में उल्लेखनीय है । इसके बाद हेमचन्द्र का ‘कुमार पाल चरित' ऐतिहासिक होने के साथ ही 'शास्त्र काव्य' भी है । गोकुलनाथ का 'भिक्षाटन' नीलकण्ठ दीक्षित का 'शिव लीलार्णव' जयद्रथ रचित 'हरिचरित चिन्तामणि' आदि शैव काव्य तथा 'वैद्य जीवन' के कर्ता लौलिम्बराज का 'हरिविलास' राज चूड़ामणि दीक्षित का 'रुक्मिणी- कल्याण', कृष्णदास कविराज का 'गोविन्द लीलामृत' आदि काव्य कृष्ण की परम्परा में आते हैं । इन्हें देव काव्य कहा जा सकता है । 1 महाभारत के कथानक तथा अवान्तर आख्यानों के आधार पर संस्कृत तथा जैन कवियों ने नवीन काव्यों का निर्माण किया। अमर चन्द्र सूरि का 'बाल भारत' समग्र महाभारत को एक ही ग्रन्थ के भीतर निबद्ध करने का सफल प्रयास है। इसके बाद देव प्रभसूरि का 'पाण्डवचरित', कृष्णानन्द का 'सहृदयानन्द, वामन भट्टबाण का 'नलाभ्युदय', वस्तुपाल रचित 'नर नारायण नन्द', साकल्यमल्ल रचित 'उदार राधव', सोमेश्वर कवि का 'सुरथोत्सव', गोविन्दमखी 'का 'हरिवंश-सारचरित', वेंकटेश्वर का 'रामचन्द्रोदय' एवं 'रघुवीर चरित' नामक महाकाव्य इसकी परम्परा में आते हैं । वासुदेव का 'युधिष्टिर विजय' तथा 'कवि राक्षसीय' काव्य यमक काव्य की परम्परा में एवं संध्याकर नन्दी का 'रामचरित', धनंजय का 'द्विसंधानकाव्य', कविराज सूरि का 'राधव - पाण्डवीय' हरिदत्त सूरि रचित 'राघवनैषधीय', विद्यामाधव का 'पार्वतीरुक्मणीय' वेंकटाध्वरी रचित 'यादव राधवीय' चिदम्बर सुमति का 'राघवपाण्डवयादवीय' तथा दैवज्ञ सूर्य्य विरचित 'रामकृष्ण विलोम' नामक काव्य श्लेष काव्य के अन्तर्गत समाहित किये जा सकते हैं । चिदम्बर कवि ने पंच कल्याण चम्पू नामक एक विचित्र चम्पू की रचना की है, जिसमें एक ही श्वास में राम, कृष्ण, शिव, विष्णु तथा सुब्रह्मण्य के विवाह का कथानक वर्णित है। श्लेष के चमत्कार प्रदर्शन का यह सबसे विलक्षण प्रयास है ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy