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________________ तृतीय अध्याय / 49 स्पष्ट छाप है। गुप्तकाल की प्रशस्ति लेखक हरिषेण और वत्सभट्टि ने कालिदास के काव्यों का गहरा अनुशीलन कर उसी के आदर्श पर अपनी कविता लिखी। ___संस्कृत साहित्य के विकास में महाकवि भारवि का नाम विशेष उल्लेखनीय रहेगा, क्योंकि उन्होंने महाकाव्य लिखने की एक नयी शैली को जन्म दिया। आचार्य कुन्तल इस अलङ्कार-बहुल पद्यति को विचित्र-मार्ग की संज्ञा देते हैं। इसकी दो विशेषताएँ हैं- विषय और भाषा। इस सम्बन्ध में ज्ञातव्य है कि परवर्ती कवियों के सामने दो प्रकार की शैलियाँ विद्यमान थीं। प्रथम वाल्मीकि-कालिदास की रसमयी शैली और दूसरी भारवि-माघ की अलंकृत शैली। परिणामतः संस्कृत काव्य क्षेत्र में पूर्व के सुकुमार मार्ग के स्थान पर विचित्र मार्ग का प्रसार हुआ। वर्ण्य - विषय तथा वर्णन - प्रकार के सामंजस्य का जो भाव कालिदास तथा अश्वघोष में उपलब्ध होता है, व्याकरण एवं अलंकार की प्रधानता के कारण परवर्ती कवि उसके प्रति उतने जागरूक नहीं है । भारवि, भट्टि, कुमारदास तथा माघ इस युग के प्रतिनिधि कवि हैं । भारवि का किरातार्जुनीय, भट्टि का 'रावण-वध', कुमारदास का 'जानकी हरण', माघ का 'शिशुपालवध' प्रवरसेन का 'सेतुबन्ध', अभिनन्द का 'रामचरित', काश्मीरी कवि भर्तमेण्ठ का हयग्रीव-वध',क्षेमेन्द्र की 'बृहत्कथा-मंजरी', सोमेन्द्र, मंखख का' श्रीकण्ठ चरित' महाकवि श्रीहर्ष का 'नैषध' आदि प्रमुख महाकाव्य संस्कृत महाकाव्यों की परम्परा में आते हैं। . संस्कृत महाकाव्य के इतिहास में जैन पण्डितों का भी प्रमुख योगदान रहा है । जैन पण्डित गण प्राचीन काल से संस्कृत भाषा तथा साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान् होते आये हैं। उन्होंने अपने तीर्थंकरों का चरित्र अलंकृत शैली में लिखकर जैन धर्म की महती सेवा की है। ऐसे जैन कवियों की बहुत बड़ी संख्या है। प्रमुख महाकवियों एवं उनके महाकाव्यों को यहाँ प्रस्तुत करना असमीचीन नहीं होगा - ___610 ई के धनेश्वर सूरि का 'शत्रुजय महाकाव्य', पन्द्रहसर्गात्मक वाग्भट्ट (1140) कृत 'नेमिनिर्वाण काव्य' उन्नीस सर्गात्मक अभयदेव (1221 ई.) कृत 'जयन्त-विजय काव्य', अमर चन्द्रसूरि (1241 ई.) कृत 'बाल-भारत', 'छन्दोरत्नावली', 'स्याद्-शब्द समुंचय तथा 'पद्मानन्द काव्य', वीर नन्दी (1300 ई.) रचित 'चन्द्रप्रभ चरित', देवप्रभसूरि (1250 ई.) विरचित 'पाण्डव-चरित्र', तेरह शतक के वस्तुपाल कृत 'नर नारायण नन्द', बालचन्द्र सूरि (13 शतक) कृत 'वसन्त-विलास', देव विमल गणि (17 शतक) रचित 'हीर-सौभाग्यं' एवम् हरिचन्द्र बारहवीं शतक के कवि की रचना 'धर्म शर्माभ्युदय' प्रमुख हैं । हर्षचरित के आरम्भ में बाणभट्ट ने जिस गद्यबन्ध वाले भट्टार हरिचन्द्र का उल्लेख किया है, उससे ये भिन्न है । भट्टार हरिचन्द्र गद्य के लेखक थे, महाकाव्य के नहीं। ऐतिहासिक महाकाव्योंकी परम्परा में पद्मगुप्त परिमल कृत 'नव साहसाङ्क चरित'विल्हण का 'विक्रमांक देव चरित' तथा कल्हण की 'राज तरंगिणी' आदि काव्य आते हैं ।
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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