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संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की परम्परा
भारतीय काव्य के निर्माण की पूर्ण प्रेरणा कवियों को रामायण एवं महाभारत से प्राप्त हुई है। उक्त महाकाव्य पाश्चात्य दृष्टि से एपिक के अन्तर्गत आते हैं, क्योंकि उनकी रचना शैली एवं विषय की विवेचना में परवर्ती महाकाव्यों से नितान्त पार्थक्य है। ___ भारतीय महाकाव्य के विकास में वेदों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता
- ऋग्वेद में (5/61) श्यावाश्य ऋषि ने अपने आश्रयदाता राजा तरन्त तथा उनकी विदुषी महिषी शशीयसी के दान की खूब प्रशंसा की है। अथर्ववेद राजा परीक्षित् के राज्य-काल में अनुभूयमान सौख्य की विपुल प्रशंसा में कतिपय मंत्रों का उल्लेख करता है । संहिता, विशेषतः ब्राह्मणों में प्राचीन कीर्ति-सम्पन्न राजाओं के विषय में अनेक ग्राह्य गाथाएँ भी उधृत की गयी हैं, जिनमें प्राचीन ऐतिहासिक राजाओं के जीवन की किन्हीं विशिष्ट घटनाओं का साहित्यिक उल्लेख भी हमें वहाँ प्राप्त होता है। ऐतरेय ब्राह्मण के शुनः शेप तथा ऐन्द्रमहाभिषेक वाले अंशों में भी ऐसी मान्य गाथाएँ हैं। कालिदास ने अपने विक्रमोर्वशीय नाटक में ऋग्वेदीय उर्वशी-पुरुरवा के संवाद को साहित्यिक रूप दिया है। ऋग्वेद के संवाद सूक्तों एवं ब्राहमणोंउपनिषदों के आख्यानादि के रहते भी मुख्यतया रामायण तथा महाभारत ही संस्कृत श्रव्य तथा दृश्य काव्यों के अक्षय स्रोत है। अनन्तर इस सम्बन्ध में पुराणों की महत्वपूर्ण भूमिका की भी उपेक्षा संभव नहीं है। 2017५ १२:५१- __ लौकिक संस्कृत के महाकाव्यों के विकास की श्रृंखला की प्रथम लड़ी में कविता लिखने का प्रथम उदय वाल्मीकि के मुखारविन्द से हुआ। रामायण आदि काव्य एवं वाल्मीकि हमारे आदि कवि हैं । जिस अवसर पर 'मा निषाद प्रतिष्ठां त्वं' के रूप में वाल्मीकि की करुण रसाप्लुत वैरवरी स्खलित हुई, उसी समय भारतीय काव्य का प्रथम अकुंर उद्भूत हुआ। आदि वाल्मीकि का आदि काव्य संस्कृत भारती का नितान्त अभिराम निकेतन है ।
वाल्मीकि की 'रसमय पद्धति' को हम सुकुमार मार्ग कह सकते हैं। रस ही उसका जीवन है स्वाभाविकता उसका भूषण है। कालिदास ने इस शैली को अपनाकर यशः अर्जन किया है। इस परम्परा में महर्षि वाल्मीकि के अतिरिक्त कवि कुलगुरु कालिदास को भी स्थान प्राप्त है। ___ कालिदास में वाल्मीकीय शैली का उदात्त उत्कर्ष मिलता है। रघुवंश 2/4 में कालिदास ने 'पूर्वसूरिभिः' के द्वारा वाल्मीकि की ओर संकेत किया है। परवर्ती कुछ कवियों ने कालिदास की शैली को अपनाने का प्रयास किया है। उदाहरणार्थ अश्वघोष के ऊपर कालिदास की