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________________ 44 / जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन BRAND 2. वर्धमान पुराण : जिनसेन (द्वितीय) ने हरिवंश पुराण में इनकी दूसरी रचना वर्धमान पुराण का उल्लेख किया है । अनुपलब्ध होने से नाम से यह ज्ञात होता है कि इसमें वर्धमान स्वामी का कथानक ह होगा 3. जय धवला टीका : कषायप्राभृत के पहले स्कन्ध की चारों विभक्तियों पर जयधवला नाम की बीस हजार श्लोक प्रमाणात्मक टीका लिखकर जब श्री गुरु वीरसेनाचार्य स्वर्ग को सिधार चुके तब उनके शिष्य श्री जिनसेन स्वामी ने उसके अवशिष्ट भाग पर चालीस हजार श्लोक प्रमाण की टीका लिखकर उसे पूरा किया । 4. आदिपुराण: यह महापुराण का आद्य भाग है । उत्तर भाग का नाम उत्तर पुराण है 1 आदि पुराण में सैंतालिस पर्व हैं, जिनमें बयालिस सम्पूर्ण करने के बाद तैंतालिसवें पर्व के श्लोक तीन तक जिनसेनाचार्य द्वारा रचित हैं, शेष पर्वों के सोलह सौ बीस श्लोक उनके शिष्य भदत्त गुणभद्राचार्य द्वारा विरचित हैं । कवि परमेश्वर द्वारा कही हुई गद्य कथा के आदिनाथ चरित का आधार लेकर जिनसेनाचार्य ने आदिपुराण की रचना की है । यह पुराण सुभाषितों का भण्डार एवं अद्वितीय ग्रन्थ रन 1 1 गुणभद्राचार्य : जिनसेन और दशरथ गुरु के शिष्य गुणभद्राचार्य भी अपने समय बहुत बड़े विद्वान हुए हैं । आप उत्कृष्ट ज्ञान से युक्त, पक्षोपवासी, तपस्वी तथा भावलिंगी मुनिराज थे । इन्होंने सोलह सौ बीस श्लोक रचकर आदिपुराण को पूरा किया । तत्पश्चात् आठ हजार श्लोकों उत्तरपुराण की रचना की । गुणभद्राचार्य जी अपने रचना के प्रारम्भ में जो पद्य लिखे हैं, उनसे इनके गुरुभक्त हृदय की अभिव्यक्ति होती है । यथा में 44.. इक्षीरिवास्य पूर्वार्द्धमेवाभावि यथा तथास्तु निष्पत्तिरिति रसावहम् प्रारभ्यते मया 1 11 ते गुरुणामेव माहात्म्यं यदपि स्वादु मद्वन्वः तरुणां हि स्वाभावोऽसौ यत्फलं स्वादु जायते ॥ निर्यान्ति हृदयाद्वाची हृदि मे गुरवः स्थिताः 1 तत्र संस्करिष्यन्ते तन्नमेऽत्र परिश्रमः पुराणमार्गमासाद्य जिनसेनानुगा ध्रुवम् भवाब्धेः पारमिच्छन्ति पुराणस्य किमुच्यते' गुणभद्राचार्य के अधोलिखित ग्रन्थ उपलब्ध हैं - "1 1 ॥" 1. उत्तरपुराण : यह महापुराण का उत्तर भाग है । इसमें प्रथमत: अजितनाथ से लेकर तेईस तीर्थंकरों, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ बलभद्र और नौ प्रति नारायण तथा जीवन्धर स्वामी आदि के कुछ कथानक दिये हुए हैं। इनकी रचना भी कवि परमेश्वर के गद्यात्मक पुराण के आधार पर हुई होगी। आठवें, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवें और चौबीसवें तीर्थंकर
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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