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42/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन प्रकार के सद्धर्मों के उपदेश से ज्ञान-वैराग्य पूर्वक जय को प्राप्त मोक्षाप्ति से जैन धर्म से धर्मार्थकाम मोक्ष चारों की उपलब्धि बताकर निर्वहण सन्धि का निर्माण किया गया है ।
जयोदय महाकाव्य का स्रोत जयोदय महाकाव्य का आधार जिनसेन का आदि पुराण है । जिसमें उन्होंने वृषभदेव के समकालीन महापुरुषों का वर्णन किया है । जयोदय के प्रथम सर्ग के द्वितीय श्लोक में कवि ने स्वयं कहा है - "पुरा पुराणेषु धुरा गुरूणां यमीश इष्टः समये पुरूणाम्" इसकी स्वोपज्ञ टीका में कवि ने कहा है अथ 'पुरा, प्राचीनकाले, 'पुराणेषु' द्वादशाङ्गस्चनारूपशब्देषु 'गुरूणां', आचार्याणां 'धुरा' प्रधानभूतेन तेन भगवज्जिनसेनमहानुभावेन, 'पुरूणां', श्रीमद्वृषभनाथतीर्थङ्कराणां, 'समये' अवसरे 'यमीना' संयतानामीशो गणाधिप 'इष्ट' इच्छाविषयीकृतः सः। महाकवि ने जयोदय की कथा को महापुराण से लेने की स्वीकारोक्ति अपने प्रकृत महाकाव्य में की है । इन तथ्यों से यह स्पष्ट है कि जयोदय महाकाव्य के स्रोत के रूप में कवि ने आचार्य जिनसेन के आदिपुराण को सामने रखा ।
जयोदय महाकाव्य की भूमिका में पं. इन्द्रलाल जी ने भी स्पष्ट कहा है - " श्री भूरामल शास्त्री महोदयोजैनः अनेन महाकविना श्री महापुराणोक्त जयकु मार-सुलोचना कथानकमवलंव्याष्टाविंशतिसर्गात्मकमेतन्महाकाव्यं व्यरचि ।" - ____ आचार्य जिनसेन के वैयक्तिक जीवन के विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती है। अभी तक के अनुसन्धान से चन्द्रसेन के शिष्य आर्यनन्दी, उनके वीरसेन तथा वीरसेन के जिनसेन शिष्य थे । जिनसेन के शिष्य गुणभद्र और गुणभद्र के शिष्य लोकसेन थे, इतना ही ज्ञात है । जिनसेन के अतिरिक्त वीरसेन स्वामी को दशरथ गुरु नाम के एक और शिष्य थे। श्रीगुणभद्र स्वामी ने उत्तरपुराण की प्रशस्ति में अपने आपको उक्त दोनों गुरुओं का शिष्य बतलाया है। विनयसेन मुनि भी वीरसेन के शिष्य थे, जिनकी प्रेरणा से जिनसेनाचार्य ने पाश्र्वाभ्युदय काव्य की रचना की थी - .
"श्रीवीरसेनमुनिपादपयोजभृङ्ग श्रीमानभृद् विनयसेन मुनिगरीयान्। तच्चीदितेन जिनसेनमुनीश्वरेण काव्यं व्यधायि परिवेष्टित मेघदूतम् ॥"
देवसेनाचार्य ने अपने दर्शनसार में लिखा है कि विनयसेन के शिष्य कुमारसेन ने आगे चलकर काष्ठासंघ की स्थापना की थी । यथा -
"सो सवणसंघवन्झो कुमारसेणी दु समय मिच्छत्तो । चत्तोवसमो रुद्दो कट्ठं संघ परुवेदि ॥"
जयधवला टीका में भी श्रीपाल, पद्मसेन और देवसेन इन तीनों विद्वानों का उल्लेख आता है । यथा -
"टीका श्री जय चिह्नि तोरुधवला सूत्रार्थ संयोतिनी स्थेयादारविचन्द्र मुज्ज्वलतपः श्रीपालसंपालिता ।"