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________________ 40/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन --- इस प्रकार इस सर्ग में जैन पद्धति के उत्कृष्ट भावनाओं का वर्णन कर जय सद्भावना चक्रबन्ध से सर्ग की समाप्ति की गयी है । इस सर्ग में भजन के पाँचवें श्लोक' की पुनरावृत्ति सर्ग के अट्ठाइसवें श्लोक में की गयी है। षडविंशतितमः सर्गः छब्बीसवें सर्ग में जयकुमार के पुत्र का राज्याभिषेक एवं जैन धर्म के स्वरूप का वर्णन कर दार्शनिक स्तवन किया गया है । अत्यन्त पराक्रमी अनन्तवीर्य नामक पुत्र प्राप्ति के बाद राजा जयकुमार के द्वारा पुत्र का राज्याभिषेक होता है । अनन्तर वह सत्कृत्य से युक्त इन्धिका नामक प्रिया को प्राप्त करता है । पुनः आशंसा व्यक्त की गयी है कि जयपुत्र अनन्त शत्रु स्वरूप रोग से पृथ्वी की रक्षा करें। ततः मनसा-वाचा-कर्मणा सुख हेतु जिन भगवान् की अर्चना को दिखाकर स्याद्वाद की महिमा का गुणगान किया गया है । गोमय वृश्चिक आदि दृष्टान्तों के द्वारा अनेक सिद्धान्तों का विवेचन किया गया है । प्रभु को ही आधि-व्याधि का निर्धान्त सन्देह शून्य चिकित्सक कहा गया है । अत्यन्त गम्भीर संसार मार्ग से विरक्त सिद्ध की इच्छा करने वाले प्रश्न के सम्बन्ध में स्वयं साक्षात् उत्कृष्ट विद्वान् जयकुमार को बताते हुए जयकुमार के प्रशंसा में ही पर्यवसान कर षडर चक्रबन्ध द्वारा सर्ग की समाप्ति की गयी है। सप्तविंशतितमः सर्गः सत्ताइसवें सर्ग में जयकुमार का ऋषभदेव भगवान् के पास पहुँचकर दीक्षा हेतु उनसे याचना करने का वर्णन है । अज्ञानान्धकार को दूर करने वाले सभा के भूषण लोक प्रधान देव आनन्द दाता भगवान् ऋषभदेव ने मनुजाधिपति जयकुमार को सम्भवतः सत्य विभव के लिये कृपा करते हुए उपदेश किया । साधारण व्यक्ति शरीर धोने, पोंछने में ही हृदय से प्रवृत्त होता है। परन्तु विद्वान् धैर्यशाली पुरुष शरीर की सेवा में तत्पर नहीं होता । इस प्रकार अनेकशः उपदेश वचनों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पन्द्रह दिन या मास पर्यन्त मननशील व्यक्ति गुरु के पास पहुँचकर सुन्दर मति सम्पन्न होकर लेश्या बुद्धि को प्राप्त होता है । और वह भैक्ष शुद्धि को अपराध नहीं समझता है । महामुनियों का शरीर विकार से शून्य शुद्ध हेम सदृश प्रतीत होता है । इस प्रकार वैराग्योत्पादक उपदेशों का वर्णन कर सत्कर्तव्य पथोपदेश हेतु तत्परता इस सर्ग में दिखाकर सर्ग का पर्यवसान किया गया है। ____अष्टाविंशतितमः सर्गः अष्टाविंशति सर्ग में जयकुमार की तपस्या का वर्णन किया गया है । पर्यवसान में इस सर्ग की प्रशंसा की गयी है । सज्जनों के पालक जयकुमार ने वैयक्ति वृत्ति को परिवर्तित कर गुरु की कृपा से भव्य जीवन को प्राप्त किया । राजचर्या का परित्याग कर हृदय कमल को विकसित करने के लिये अर्हन् देव की कृपा से उनके पास पहुँचकर उसने तपश्चर्या
SR No.006171
Book TitleJayoday Mahakavya Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailash Pandey
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra
Publication Year1996
Total Pages270
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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