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द्वितीय अध्याय /39 तदनन्तर अन्य लोगों को विश्वास दिलाने हेतु जयकुमार के द्वारा जन्मान्तर के वृत्तान्त को सुनाने के लिये सुलोचना प्रेरित की गयी । प्रेरणा पाकर सुलोचना ने अपने एवं जय के पूर्वभवों का क्रमिक, समुचित एवं विस्तृत वर्णन किया।
इस प्रकार पूर्वभव के वर्णनानन्तर वैराग्य परक संगीत स्थायी टेक के माध्यम से इसी गीत में ही सर्ग की समाप्ति की गयी है । यह संगीत चर्पट मंजरी की भाँति वर्णित है । षडरचक्रबन्ध से सर्ग का समापन किया गया है । यहाँ जयकुमार को दिव्य ज्ञान विभूति सम्पन्न बताया गया है।
चतुर्विंशतितमः सर्ग : इस सर्ग में जयकुमार एवं सुलोचना का सह विहार चित्रित किया गया है । जिस प्रकार विष्णु लक्ष्मी से एवं शंकर पार्वती से सदा संयुक्त रहे, उसी प्रकार सुलोचना के साथ जयकुमार का सम्पर्क सर्वोत्तम एवं पवित्र रहा । कुलाचल की भाँति कुल के दृढ़ परम्पराओं का जयकुमार ने निर्वाह किया । जैसे पर्वतों पर मेघ मण्डल स्वयं परिव्याप्त होता है, वैसे ही जयकुमार ने राजाओं पर अपने प्रभाव का विस्तार किया । .. .
आगे सुलोचना को सम्बोधन कर विहार काल में जयकुमार ने हिमालय का वर्णन किया है । इसके बाद उसने जिन भगवान् की लम्बी स्तुति की है । इस स्तुति के सन्दर्भ में युवावस्था में दया करनी चाहिए एवं सुकृत्यों में रुचि रखनी चाहिए इत्यादि वेद वाक्यों का परिपालन करते हुए उसने देवेन्द्र को प्रसन्न किया । जय की निष्काम भावना को देखकर यक्ष सुप्रभ देव ने सपत्नीक उसका पूजन किया ।
___ अन्ततः जयकुमार और सुलोचना के अखिल तीर्थ - देश का भ्रमण दिखाते हए सर्ग की समाप्ति की गयी है। सर्ग की समाप्ति में ग्रन्थकार ने अपने वीरोदय काव्य का भी नामोल्लेख किया है।
पंचविंशतितमः सर्गः .. पंचविंशति सर्ग में जयकुमार के वैराग्योत्पत्ति का वर्णन किया गया है। सांसारिक अरुचि उत्पन्न हो जाने के कारण जयकुमार को शीघ्र ही वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसकी सम्पूर्ण विचार धारा ही बदल गयी । उसने विचार किया कि विश्व के सारे वैभव स्वप्न सदृश हैं। यह सम्पूर्ण विश्वपदार्थ नश्वर है । नेत्र के बन्द होने पर मृगाक्षी युवतियाँ, मत्त हाथी, चंचल घोड़े, सेनाएँ ये सब के सब व्यर्थ हो जाते हैं । अन्ततः जयकुमार की तत्परता भगवान् जिन की उपासना में बढ़ जाती है। .. ततः स्त्रियों के मलमूत्रमय घृणा के योग्य जघन प्रदेश में व्रण सदृश स्थान (वराङ्ग) में नियत रूप से घर्षण करते हुए आनन्द को प्राप्त करने वाले विषयी जनों के प्रति आश्चर्य एवं दुःख प्रगट करते हुए वैराग्य प्रदर्शित किया गया है ।