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38/जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
द्विविंशतितमः सर्गः बाइसवें सर्ग में सुलोचना के साथ जयकुमार के वार्तालाप का वर्णन किया गया है। दम्पति का पारस्परिक जीवन सम्बन्ध महत्वशाली एवं योग्यतानुरूप समुचित रूप में दिखाया गया है, जो राष्ट्र एवं प्रजा वर्ग के लिये भी हितावह है । पति-पत्नी का जीवन किस प्रकार सफल बन सकता है, उसका यथार्थ स्वरूप इस सर्ग से प्रदर्शित किया गया है ।
परस्पर के सान्निध्य से ही दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति तथा वैभव उपस्थित हो सकता है । इस पर यहाँ अनेक अन्तरङ्ग दृष्टियों से प्रकाश पाया गया है.। दम्पति की प्रेममयी वार्ता का विस्तृत निबन्धन करने के अनन्तर महाकवि ने संसार में सुलोचना और जयकुमार की यश प्रतिष्ठा के चिरस्थाई होने की कामना करता है । वह चाहता है बाला सुलोचना गद्य रूप चिन्तामणि एवं जयकुमार धर्म, कल्याण स्वरूप अधिपति होकर अपने यशस्तिलक से भूतल को अलङ्कत करें।
___ अनेक मण्डल का आश्रय होने से जय को समुद्र एवं गुण सम्पत्तियों से सम्पकृत्त होने से सुलोचना को घटोग्नि बताया गया है । ___ अन्त में उभय की प्रशंसा करते हुए उनके अनुराग को उत्कृष्ट बताया गया है । दोनों को परस्पर प्रवृत्त कराने के कारण प्रवर्तन नामक चक्रबन्ध से सर्ग की समाप्ति दिखायी गयी
त्रयोविंशतितमः सर्गः इस सर्ग में सत्कुलप्रसूत जयकुमार अपने अनुज विजय को राज्यभार समर्पण कर हृदय में हित की भावना रखकर प्रजा की प्रियता हेतु साधना में तत्पर हो जाते हैं । यहाँ भी प्रियतमा के सान्निध्य से उत्पन्न हर्ष एवं विलक्षण सुख से वह तृप्त होते हैं । सन्नीति, सेना एवं गुप्तचरों को सुष्ठु व्यवस्था के कारण जयकुमार विहीन भी प्रजा सुखी एवं प्रभायुक्त हुई । भू-तल में ईति भाव का अभाव फैलने लगा । धरा छः प्रकार के दुर्भिक्ष से शून्य रही । .ततः नैषध की परम्परा पर चलते हुए कवि ने विरोधाभास के माध्यम से जयकुमार की बातें पुनः प्रारम्भ कर दी हैं।
एक बार ऐसा हुआ कि प्रासाद भवन के शिखर पर युवतिसमूह से परिवेष्टित जयकुमार एक गगनगामी व्योम यान को देखकर प्रभावती ऐसा कहकर मूर्च्छित हो जाता है । चेतना शक्ति लौटने पर पूर्व जन्म की बातों का स्मरण हो आया । उसी समय एक कबूतर दम्पति को देखकर प्रतिव्रता सुलोचना को भी पूर्वजन्म का स्मरण हो आता है । यही नहीं कई अन्य पूर्व जन्मों के वृत्तान्त का भी ज्ञान हो जाता है ।