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36/ जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन
अष्टादशः सर्ग : अट्ठारहवें सर्ग में प्रभातकाल का वर्णन किया गया है । प्रभातकाल में सूतगण राजा की स्तुति में प्रवृत्त होते हैं । सूर्य के उदय होने से निर्मल प्रकाश फैलेगा । सबका कल्याण होगा । ऐसा विचार कर ब्राह्मण स्वस्तिवाचन करने लगे । रात्रि प्रबन्ध का ऐश्वर्य गुणशाली की भाँति जब समाप्त होने लगा, मन्द-मन्द वायु बहने लगी, वायुवश जल राशि में जब कुछ स्पन्दन होने लगा तब रात्रि शीघ्रता से निकल गयी । प्रात:कालिक वाद्यों का विराम हो जाने पर राजा के स्थान पर पहुँचकर सूतगण रात्रि समाप्ति की सूचना हेतु मधुर मनोरम गान करने लगे । इस प्रकार बहुविध प्राभातिक प्रक्रिया का समासोक्ति आदि के द्वारा बड़ा ही मनोरम चित्रण है।
ततः राजाओं को सम्बोधन कर सूतगण के कथन का मनोरम वर्णन हुआ है । पुनः आगे कहा गया है कि जगे हुए अर्हन् देवोपासक का देवर्षियों की भाँति अभिनन्दन करने वाले नन्दीगण नियोग रूप मन्त्र से स्तुति किये।
इस प्रकार अनेकविध हास्योत्पादक वृत्त तथा नायक-नायिका विहार आदि का अनेकशः वर्णन कर इस सर्ग की समाप्ति कर दी गयी है।
एकोनविंशतिः सर्ग : यहाँ प्रथमतः जयकुमार के द्वारा सन्ध्यावन्दन करना दिखाया गया है। साँमयिक वर्णन के साथ शान्ति समुद्र जिन भगवान् की विस्तृत स्तुति दिखायी गयी है । शीघ्रतापूर्वक दैनिक कृत्य सम्पन्न करने से पवित्र अन्त:करण उसने कोमल हाथ से प्रियाधरणी का स्पर्श किया। समीपवर्ती जल प्रवाह में स्नान करने के अनन्तर उसने पयोधरीभूत-चतुः समुद्रा तथा लतावत्सक गो (पृथ्वी) की परिक्रमा कर शुद्ध निर्जन स्थान में प्रवेश किया । वहाँ उसने प्राणायाम सम्पन्न किया मानो यह सोचकर कि जिसने प्राण को नियन्त्रित नहीं किया वह प्राणियों को क्या अपने वश में कर सकता है ।।
ततः स्वयं जल (जड) प्रवाह के लिये सेतु सरीखे गुरु के सामने उपस्थित हुआ । सन्ध्या के यथार्थ तत्त्वों को अपनाकर दीप्तिमान् निर्मल शरीरधारी होकर स्तुति करना प्रारम्भ कर दिया । यहाँ का स्तुति प्रसङ्ग अत्यन्त व्यापक एवं दार्शनिक विचारों से परिपूर्ण है ।
आगे गृहस्थ जीवन का प्रशंसापरक वर्णन किया गया है । तदनन्तर महात्माओं का यह महत्व है कि शीतोष्णादि दुःख को सहन करते हैं । कोने में रखे गये स्थिति मात्र को सूचित करने वाले काष्ठ सदृश बहुत से मनुष्य परोपदेश करने में कुशल तो हैं पर जिसने अपने चित्त को यथार्थतः नियन्त्रित कर रखा हो, वही वास्तविक शिष्ट व्यक्ति कहे जाने का अधिकारी है, आदि बातें कही गयी हैं ।